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________________ सूत्र नम्बर विषय अध्याय नवमाँ भूमिका, संवरका स्वरूप संवरकी विस्तार से व्याख्या ध्यानमें रखने योग्य बातें निर्जराका स्वरूप १ संवरका लक्षण २ संवरके कार‍ गुप्तिका स्वरूप ३ निर्जरा और संरका कारण तपका अर्थ-स्वरूप और उस सम्बन्धी होनेवाली भूल तपके फल के बारे में स्पष्टीकरण ४ गुप्तिका लक्षण और भेद गुप्तिकी व्याख्या ५ समितिके पॉच भेद ७० उस सम्बन्ध में होनेवाली भूल ६ उत्तम क्षमादि दश धर्म उस सम्बन्धमें होनेवाली भूल बारह अनुप्रेक्षा ७ ८ परीपह सहन करनेका उपदेश ६ परीपहके २२ भेद परीपद जयका स्वरूप इस सूत्र का सिद्धान्त १० दशमेंसे बारहवें गुणस्थान तककी परीपहें ११ तेरहवें गुणस्थानमें परीपह केवली भगवान्को आहार नहीं होता, इस सम्बन्ध में सष्टीकरण पत्र संख्या ६४५ ६४६-४८ Ye ६५१ ६५४ ६५६ 59 ६५८ ६५६ ६६१ ६६१ ६६२ ६६३ ६६३ ६६६ ६६७ ६७१ ६७६ ६८० ६८१ से ६८५ ६८५ ६६८ ६८६ ६६१ से ६६५
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
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