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________________ ६२८ मोक्षशास्त्र मोहनीय और अंतराय ये चार घातिया कर्म कहलाते हैं, क्योंकि वे जीवके अनुजीवी गुणों की पर्यायके घातमें निमित्त हैं; श्रीर वाकीके वेदनीय, आयु, नाम और गोत्र इन चारको अघातिया कर्म कहते हैं क्योंकि ये जीवके अनुजीवी गुणों की पर्यायके घातमें निमित्त नहीं किन्तु प्रतिजीवी गुणों की पर्यायके घात में निमित्त हैं । वस्तु में भावस्वरूप गुरण अनुजीवी गुण और अभावस्वरूप गुण प्रतिजीवी गुण कहे जाते हैं । ३ - जैसे एक ही समयमें खाया हुआ आहार उदराग्निके संयोगसे रस लोहू आदि भिन्न २ प्रकारसे हो जाता है, उसीप्रकार एक ही समय में ग्रहण किये हुए कर्म जीवके परिणामानुसार ज्ञानावरण इत्यादि अनेक भेदरूप हो जाता । यहाँ उदाहरणसे इतना अन्तर है कि आहार तो रस रुधिर आदि रूपसे क्रम - क्रमसे होता है परन्तु कर्म तो ज्ञानावरणादिरूपसे एक साथ हो जाते हैं ॥४॥ प्रकृतिबंध के उत्तर भेद पंचनवद्व्यष्टाविंशतिचतुर्द्विचत्वारिंशत् द्विपंचभेदा यथाक्रमम् ||५|| - अर्थ – [ यथाक्रमम् ] उपरोक्त ज्ञानावरणादि आठ कर्मोके अनुक्रमसे [ पंचनवद्वचष्टाविंशतिचतुद्विचत्वारिंशत् द्वि पंचभेदाः ] पाँच, नव, दो, अट्ठाईस, चार, व्यालीस, दो और पाँच भेद हैं । नोट- उन भेदोंके नाम अब आगेके सूत्रोंमें अनुक्रमसे बतलाते हैं ॥५॥ ज्ञानावरणकर्मके ५ भेद मत्तिश्रुतावधिमनःपर्ययकेवलानाम् ॥६॥ अर्थ - [ मतिभृतावधिमनः पर्यय केवलानाम् ] मतिज्ञानावरण, श्रुतज्ञानावरण, अवधिज्ञानावरण, मन:पर्ययज्ञानावरण और केवलज्ञानावरण ये ज्ञानावरणकर्मके पाँच भेद हैं । •
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
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