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________________ सूत्र नम्बर भूमिका १ व्रतका लक्षण इस सूत्र कथित व्रत, सम्यग्दृष्टि के भी शुभास्रव है बन्धका कारण है उनमें अनेक शास्त्राधार इम सूत्रका सिद्धान्त ६६ विषय अध्याय सातवाँ २ व्रतके भेद इस सूत्र कथित त्यागका स्वरूप अहिंसा, सत्यादि चार व्रत सम्बन्धी स हिसाके त्याग सम्बन्धी ३ व्रतों में स्थिरताके कारण ४ अहिसाव्रतको पाँच भावनायें ५ - सत्यव्रतकी पाँच भावनायें ६ अचौर्यनकी पाँच भावनायें ब्रह्मचर्य व्रतकी पाँच ७ "3 म परिग्रह त्याग व्रतकी पाँच भावनायें ६-१० हिंसा आदि से विरक्त होनेकी भावना ११ व्रतधारी सम्यग्दृष्टिकी भावना १२ व्रतों की रक्षा के लिये सम्यग्दृष्टिकी विशेष भावना जगतका स्वभाव शरीरका स्वभाव संवेग, वैराग्य, विशेष स्पष्टीकरण १३ हिसा, पापका लक्षण आत्मा शुद्धोपयोगरूप परिणामको घातनेवाला भाव ही हिंसा है १३ वे सूत्रका सिद्धान्त १४ असत्यका स्वरूप सत्यका परमार्थ स्वरूप पत्र संख्या ५५५ ५४७ ५४७ से ५५६ ५५६ ५५६ ५५८ ५५८-५६ ५५६ ५५६ ५६० ५६१ ५६३ ५६३ ५६४ ५६५-५६६० ५६७. ५६६ ५६६ ५७१ ५७२-५७३ ५७४ ५७५ ५७७ ५७७ ५७७
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
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