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________________ ५५० मोक्षशानः ४-अंकषाय स्वरूपमें जाग्रत-सावधान रहनेसे ही प्रमाद दूर होता है । सर्म्यग्दृष्टि जीवोंके चौथे गुणस्थानमें अनन्तानुबन्धी कपाय पूर्वक होनेवाला प्रमाद दूर हो जाता है, पांचवें गुणस्थानमें अनन्तानुबन्धी तथा अप्रत्याख्यान कषायपूर्वक होनेवाला प्रमाद दूर हो जाता है, छट्ठ गुणस्थानमें अनन्तानुबन्धी अप्रत्याख्यान और प्रत्याख्यान कषाय पूर्वक होनेवाला प्रमाद दूर हो जाता है किन्तु तीन संज्वलन कषाय पूर्वक होनेवाला प्रमाद होता', है । इसप्रकार उत्तरोत्तर प्रमाद दूर होता जाता है और बारहवें गुणस्थानमें सर्व कषायका नाश हो जाता है। ५-उज्ज्वल वचन, विनय वचन और प्रियवचनरूप भाषा वर्गणा समस्त लोकमें भरी हुई है, उसकी कुछ न्यूनता नही कुछ कीमत देनी नहीं पड़ती, पुनश्च मीठे कोमलरूप वचन बोलनेसे जीभ नही दुखती, शरीरमें कष्ट नहीं होता, ऐसा समझकर असत्यवचनको दु.खका मूल जानकर शीघ्र उस प्रमादका भी त्याग करना चाहिये और सत्य तथा प्रियवचनकी ही प्रवृत्ति करनी चाहिये ऐसा व्यवहारका उपदेश है ॥१४॥ स्तेय (-चोरी ) का स्वरूप. अदत्तादानं स्तेयम् ॥१५॥ प्रर्थ-प्रमादके योगसे [ प्रदत्तादानं] बिना दी हुई किसी भी, वस्तुको ग्रहण करना सो [ स्तेयम् ] चोरी है । टीकाप्रश्न-कर्मवर्गणा और नोकर्मवर्गणाओंका ग्रहण चोरी कहलाथगा या नही ? उचर-वह चोरी नही कहा जायगा; जहाँ लेना-देना सम्भव हो वहाँ चोरीका व्यवहार होता है-इस कारणसें 'अदत्त' शब्द दिया है। प्रश्न-मुनिराजके ग्राम-नगर इत्यादिमें भ्रमण करने पर शेरी दरवाजा आदिमें प्रवेश करनेसे क्या अदत्तादान होता है ? उत्तर-यह अदत्तादान नहीं कहलाता क्योंकि यह स्थान सभीके
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
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