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________________ मोक्षशास्त्र २. इस सूत्र के अर्थकी पूर्णता करनेके लिये निम्न तीन वाक्योंमेंसे कोई एक वाक्य लगाना - ५६८ (१) 'तत्स्थैर्यार्थ भावयितव्यामि' इन अहिंसादिक पांच व्रतों की स्थिरताके लिये भावना करनी योग्य है । (२) 'भावयतः पूर्णान्य हिंसादीनि व्रतानि भवन्ति' इस भावनाके भानेसे अहिंसादिक पाँच व्रतोंकी पूर्णता होती है । (३) 'तत्स्थैर्यार्थम् भावयेत्' इन पाँच व्रतोंकी दृढ़ता के लिये भावना करे । [ देखो सर्वार्थसिद्धि श्रध्याय ७ पृष्ठ २९ ] ३. ज्ञानी पुरुषोंको अज्ञानी जीवोंके प्रति द्वेष नहीं होता, किन्तु करुणा होती है इस बारेमें श्री श्रात्मसिद्धि शास्त्रकी तीसरी गाथा में कहा है कि कोई क्रिया जड़ हो रहा शुष्क ज्ञानमें कोई । माने मारग मोक्षका करुणा उपजे जोई ॥ ३ ॥ अर्थ — कोई क्रियामें ही जड़ हो रहा है, कोई ज्ञानमें शुष्क होरहा है और वे इनमें मोक्षमार्ग मान रहे है उन्हें देखकर करुणा पैदा होती है । गुणाधिक — जो सम्यग्ज्ञानादि गुरणोमें प्रधान — मान्य --- बड़ा हो वह गुणाधिक है । क्लिश्यमान - जो महामोहरूप मिथ्यात्वसे ग्रस्त है, कुमति कुश्रुतादिसे परिपूर्ण है जो विषय सेवन करनेकी तीव्र तृष्णारूप अग्निसे अत्यन्त दग्ध हो रहे हैं और वास्तविक हितकी प्राप्ति और अहित का परिहार करनेमे जो विपरीत हैं- - इस काररणसे वे दुःख से पीड़ित हैं, वे जीव क्लिश्यमान हैं । अविनयी — जो जीव मिट्टीके पिंड लकड़ी या दीवालकी तरह जड़अज्ञानी हैं वे वस्तुस्वरूपको ग्रहण करना ( समझना और धारण करना ) नही चाहते, तर्क शक्तिसे ज्ञान नही करना चाहते तथा दृढ़रूपसे विपरीत
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
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