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________________ अध्याय ७ सूत्र ५-६-७ को यथार्थ बुद्धिके द्वारा सत्य आगमका अभ्यास करना और सम्यग्दर्शन प्रगट करना चाहिये । इसीसे ही जीवका कल्याण होता है ॥५॥ अचौर्यव्रतकी पाँच भावनायें शून्यागारविमोचितावासपरोपरोधाकरणभक्ष्य शुद्धिसधर्माऽविसंवादाः पंच ॥ ६॥ अर्थ-[ शून्यागारविमोचितावासपरोपरोधाकरणभक्ष्यशुद्धिसधर्माऽविसंवादाः ] शून्यागारवास-पर्वतोंकी गुफा, वृक्षकी पोल इत्यादि निर्जन स्थानों में रहना, विमोचितावास-दूसरोंके द्वारा छोडे गये स्थानमें निवास करना, किसी स्थान पर रहते हुये दूसरोको न हटाना तथा यदि कोई अपने स्थानमे आवे तो उसे न रोकना, शास्त्रानुसार भिक्षाकी शुद्धि रखना और साधर्मियोके साथ यह मेरा है-यह तेरा है ऐसा क्लेश न करना [पंच ] ये पांच अचौर्यव्रतकी भावनाये है। टीका समान धर्मके धारक जैन साधु-श्रावकोंको परस्परमे विसंवाद नहीं करना चाहिये, क्योकि विसंवादसे यह मेरा यह तेरा ऐसा पक्ष ग्रहण होता है और इसीसे अग्राह्यके ग्रहण करनेकी संभावना हो जाती है ॥६॥ ब्रह्मचर्यव्रतकी पाँच भावनायें स्त्रीरागकथाश्रवणतन्मनोहराङ्गनिरीक्षणपूर्वरतानुस्मरण, वृष्येष्टरसस्वशरीरसंस्कारत्यागाः पंच ॥७॥ अर्थः-[खीरागकथाश्रवणत्यागः ] स्त्रियोमे राग बढ़ानेवाली कथा सुननेका त्याग, [तन्मनोहरांगनिरीक्षणत्यागः] उनके मनोहर अंगोंको निरख कर देखनेका त्याग [ पूर्वरतानुस्मरणत्यागः] अन्नत अवस्थामे भोगे हुए विषयोके स्मरणका त्याग, [वृष्येष्टरसत्यागः] कामवर्धक गरिष्ठ रसों का त्याग और [ स्वशरीरसंस्कारत्यागः ] अपने शरीरके सस्कारोका त्याग [पंच ] ये पांच ब्रह्मचर्यव्रतकी भावनायें हैं ।
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
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