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________________ अध्याय ७ सूत्र ४-५ ५६१ उत्तर-यह विरोध नहीं, क्योंकि यहाँ गुप्ति तथा समितिका अर्थ अशुभवचनका निरोध तथा अशुभ विचारका निरोध होता है, तथा नवमें अध्यायके दूसरे सूत्रमे शुभाशुभ दोनों भावोंका निरोध अर्थ होता है। (देखो तत्वार्थसार अध्याय ४ गाथा ६३ हिन्दी टीका ( पृष्ठ २१६ ) ३. प्रश्न-यहां कायगुप्तिको क्यों नही लिया ? उत्तर-ईर्यासमिति और आदाननिक्षेपणसमिति इन दोनोमें कायगुप्तिका अन्तर्भाव हो जाता है । ४. आलोकितपान भोजनमें रात्रिभोजन त्यागका समावेश हो जाता है। सत्यव्रतकी पाँच भावनायें क्रोधलोभभीरुत्वहास्यप्रत्याख्यानान्यनुतीचिभाषणं च पंच ॥ ५॥ प्रर्थ-[ क्रोधलोभभीरुत्वहास्यप्रत्याख्यानानि ] क्रोधप्रत्याख्यान, लोभप्रत्याख्यान, भीरुत्वप्रत्याख्यान, हास्यप्रत्याख्यान अर्थात् क्रोधका त्याग करना, लोभका त्याग करना, भयका त्याग करना, हास्यका त्याग करना, [ अनुवीचिभाषणं च ] और शास्त्रकी आज्ञानुसार निर्दोष वचन बोलना [ पंच ] ये पांच सत्यव्रतकी भावनायें हैं। टीका १.प्रश्न-सम्यग्दृष्टि निर्भय है इसीलिये निःशंक है और ऐसी अवस्था चौथे गुणस्थानमे होती है तो फिर यहाँ सम्यग्दृष्टि श्रावकको और मुनिको भयका त्याग करनेको क्यो कहा ? उचर-चतुर्थ गुरणस्थानमे सम्यग्दृष्टि अभिप्रायकी अपेक्षासे निर्भय है अनंतानुबंधी कषाय होती है तब जिसप्रकारका भय होता है उसप्रकारका भय उनके नहीं होता इसलिये उनको निर्भय कहा है किन्तु वहाँ ऐसा कहनेका आशय नही है कि वे चारित्रकी अपेक्षासे सर्वथा निर्भय हुये हैं।
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
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