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________________ ४३२ सूत्र नम्बर विषय पत्र संख्या छहों द्रव्य अपने २ स्वरूपमें सदा परिणमते है, कोई द्रव्य किसीका कभी भी प्रेग्क नहीं है वस्तुकी प्रत्येक अवस्था भी "स्वतः सिद्ध" असहाय रागद्वेष परिणामका मूल प्रेरक कौन ४३२ ३१ नित्यका लक्षण ४३३ ३२ एक वस्तुमें दो विरुद्ध धर्म सिद्ध करनेकी रीति ४३३ अर्पित अनर्पितके द्वारा ( मुख्य-गौणके द्वारा) अनेकान्त स्वरूपका कथन, ४३४ विकार सापेक्ष है कि निरपेक्ष ? ४३८, अनेकान्तका प्रयोजन ४३८ एक द्रव्य दूसरे द्रव्यका कुछ भी कर सकता है इस मान्यतामें आने वाले दोपोंका वर्णन, संकर, व्यतिकर, अधिकरण, परस्पराश्रय, संशय, अनवस्था, अप्रतिपत्ति, विरोध, अभाव, ४३८-४१ मुख्य और गौणका विशेष ४४२ ३३ परमाणुओं में बन्ध होनेका कारण ४४२. ३४ परमाणुओंमें वन्ध कब नहीं होता ४४३ इस सूत्रका सिद्धान्त ३५. परमाणुओंमें बन्ध कब नहीं होना ४४५३६ परमाणुओंमें बन्ध कब होता है ? ३७ दो गुण अधिकके साथ मिलने पर नई व्यवस्था कैसी हो १ ४४६ ३८ द्रव्यका दूसरा लक्षण (गुण-पर्यायकी व्याख्या) ४४७ ३६-४० काल भी द्रव्य है-व्यवहार कालका भी वर्णन ४४८-४६ ४१ गुणका वर्णन ४५० इस सूत्रका सिद्धान्त ४५० ४२ पर्यायका लक्षण-इस सूत्रका सिद्धान्त ४५०-१५१ उपसंहार छहों द्रव्योंको लागू होनेवाला स्वरूप, द्रव्योंकी संख्या-नाम, ४५२
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
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