SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 632
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५५२ मोक्षशास्त्र धारा है उतने अंशमें कर्म बन्ध होता है; और जितने अंश में ज्ञानधारा है उतने अंश में कर्म का नाश होता जाता है । विषय-कपाय के विकल्प अथवा व्रत-नियम के विकल्प-शुद्ध स्वरूप का विकल्प तक कर्म बन्धका कारण है। शुद्ध परिणतिरूप ज्ञानधारा ही मोक्ष का कारण है। (-समयसार नई गुजराती आवृत्ति; पृष्ठ २६३-६४) पुनश्च, इस कलशके अर्थ में श्री राजमलजी भी साफ स्पष्टीकरण करते हैं कि: 'यहाँ कोई भ्रान्ति करेगा--'मिथ्यादृष्टिको यतिपना क्रियारूप है वह तो बंधका कारण है; किन्तु सम्यग्दृष्टिको जो यतिपना शुभ क्रियारूप है वह मोक्षका कारण है; क्योंकि अनुभव ज्ञान तथा दया, व्रत, तप संयमरूपी क्रिया-यह दोनों मिलकर ज्ञानावरणादि कर्मोंका क्षय करते हैं।' -ऐसी प्रतीति कोई अज्ञानी जीव करता है, उसका समाधान इस प्रकार है ___ जो कोई भी शुभ-अशुभ क्रिया-बहिर्जल्परूप विकल्प अथवा अंतर्जल्परूप अथवा द्रव्यके विचाररूप अथवा शुद्धस्वरूपके विचार इत्यादि -है वह सब कर्म बन्धका कारण है। ऐसी क्रियाका ऐसा ही स्वभाव है । सम्यग्दृष्टि, मिथ्यादृष्टि का ऐसा तो कोई भेद नहीं है ( अर्थात् अज्ञानीके उपरोक्त कथनानुसार शुभक्रिया मिथ्यादृष्टिको तो बन्धका कारण हो और वही क्रिया सम्यग्दृष्टिको मोक्षका कारण हो-ऐसा तो उनका भेद नही है ) ऐसी क्रिया से तो उसे (सम्यक्त्त्वी को भी ) वन्ध है और शुद्धस्वरूप परिणमन मात्रसे मोक्ष है। यद्यपि एक ही काल में सम्यग्दृष्टि जीवको शुद्धज्ञान भी है और क्रियारूप परिणाम भी है, किन्तु उसमे जो विक्रियारूप परिणाम है उससे तो मात्र बन्ध होता है। उससे कर्मका क्षय एक अंश भी नहीं होता-ऐसा वस्तुका स्वरूप है, तो फिर इलाज क्या ?-उस काल ज्ञानी को शुद्ध स्वरूपका अनुभवज्ञान भी
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy