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________________ ५४२ मोक्षशास्त्र तराय कर्ममें अधिक अनुभाग पड़ा और अन्य प्रकृतियोंमें मंदअनुभाग पड़ा। प्रकृति और प्रदेश वन्धमें योग निमित्त है तथा स्थिति और अनुभागवंधमें कषायभाव निमित्त है ॥ २७ ॥ उपसंहार (१) यह आसव अधिकार है जो कपाय सहित योग होता है वह आसवका कारण है, उसे सांपरायिक आसव कहते हैं । कपाय शब्दमें मिथ्यात्व, अविरति और कषाय इन तीनोंका समावेश हो जाता है; इसीलिये अध्यात्म शास्त्रोमें मिथ्यात्व अविरति, कषाय तथा योगको आसवका भेद गिना जाता है। यदि उन भेदोंको वाह्यरूपसे स्वीकार करे और अंतरंगमै उन भावोंकी जातिकी यथार्थ पहचान न करे तो वह मिथ्यादृष्टि है और उसके पासूव होता है । (२) योगको आसवका कारण कहकर योगके उपविभाग करके सवषाय योग और अकषाय योगको आसूवका कारण कहा है। और २५ प्रकार की विकारी क्रिया और उसका परके साथ निमित्त नैमित्तिक संबंध कैसा है यह भी बताया गया है। (३) अज्ञानी जीवोके जो रागद्वेष, मोहरूप पासूवभाव है उसके नाश करनेकी तो उसे चिंता नही और बाह्य क्रिया तथा बाह्य निमित्तोंको दूर करनेका यह जीव उपाय करता है। परन्तु इसके मिटने से कही आसव नही मिटते । दृष्टांत:-द्रव्यलिंगी मुनि अन्य कुदेवादिकी सेवा नहीं करता, हिसा तथा विषयमें प्रवृत्ति नहीं करता, क्रोधादि नही करता तथा मन वचन कायको रोकनेका भाव करता है तो भी उसके मिथ्यात्वादि चार आसूव होते हैं, पुनश्च ये कार्य वे कपटसे भी नहीं करते, क्योंकि यदि कपट से करे तो वह गैवेयक तक कैसे पहुँचे ? सिद्धांत-इससे यह सिद्ध होता है कि जो बाह्य शरीरादिक की क्रिया है वह आसव नही है किन्तु अन्तरंग अभिप्रायमें जो मिथ्यात्वादि रागादिकभाव है वही आसव है, जो जीव उसे नही पहचानता उस जीवके आसूव तत्त्वका यथार्थ श्रद्धान नहीं। (४) सम्यग्दर्शन हुये बिना आसूव तत्त्व किचित् मात्र भी दूर नहीं
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
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