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________________ अध्याय ६ सूत्र १० ५०६ ३-यहाँ यह तात्पर्य है कि जो काम करनेसे अपने तथा दूसरे के तत्त्वज्ञानमे बाधा आवे या मलिनता हो वे सब ज्ञानावरण कर्मके आसूचके कारण हैं। जैसे कि एक ग्रंथके असावधानीसे लिखने पर किसी पाठको छोड देना अथवा कुछ का कुछ लिख देना सो ज्ञानावरण कर्मके आसवका कारण होता है । ( देखो तत्त्वार्थसार पृष्ठ २००-२०१) ४-और फिर दर्शनावरणके लिये इस सूत्रमे कहे गये छह कारणो के पश्चात् अन्य विशेष कारण श्री तत्त्वार्थसारके चौथे अध्यायकी १७-१८ १६ वी गाथामे निम्नप्रकार दिये है: सोना (१०) नास्तिकपनको भावना रखना ( ११ ) सम्यग्दर्शनमे दोष लगाना ( १२) कुतीर्थवालोको प्रशंसा करना ( १३ ) तपस्वियो (दिगम्बर मुनियों ) को देखकर ग्लानि करना-ये सब दर्शनावरण कर्मके पासूवके कारण हैं। ५. शंका-नास्तिकपनेकी वासना आदिसे दर्शनावरणका आसूव कैसे होगा, उनसे तो दर्शन मोहका पासव होना सभव है क्योकि सम्यर उपयोग । समाधान-जैसे वाह्य इन्द्रियोसे मूर्तिक पदार्थोका दर्शन होता है वैसे ही विशेषज्ञानियोके अमूर्तिक आत्माका भी दर्शन होता है, जैसे सर्व ज्ञानोमे आत्मज्ञान अधिक पूज्य है वैसे ही वाह्य पदार्थों के दर्शन करने से कारणो को दर्शनावरण कर्मके आसवका कारण मानना अनुचित नही है। इसप्रकार नास्तिकपनेकी मान्यता आदि जो कारण लिखे हैं वे दोष दर्शनावरण कर्मके आसूवके हेतु हो सकते है ? (देखो तत्वार्थसार पृष्ठ२०१-२०२) यद्यपि आयुकर्मके अतिरिक्त अन्य सात कर्मोका पासव प्रति समय हुवा करता है तथापि प्रदोषादिभावोके द्वारा जो ज्ञानावरणादि खाम-विशेष कर्मका बध होना बताया है वह स्थितिवध और अनुभागवधको अपेक्षाखे
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
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