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________________ ५०२ मोक्षशास्त्र (१७) निसर्ग क्रिया--पापके साधनोंके लेने देनेमें सम्मति देना । (१८) विदारण क्रियां--पालस्यके वश हो अच्छे काम न करना और दूसरेके दोष प्रगट करना सो विदारण क्रिया है । (१९) आज्ञाव्यापादिनी क्रिया-शास्त्रकी प्राज्ञाका स्वयं पालन न करना और उसके विपरीत अर्थ करना तथा विपरीत उपदेश देना सो 'आज्ञाव्यापादिनी क्रिया है। (२०) अनाकांक्षा क्रिया-उन्मत्तपना या आलस्यके वश हो प्रवचन ( शास्त्रों ) में कही गई आज्ञाओंके प्रति आदर या प्रेम न रखना सो अनाकांक्षा क्रिया है। अब अंतिम पाँच क्रियायें कहते हैं, इनके होनेसे धर्म धारण करने में विमुखता रहती है (२१) आरम्भ क्रिया-हानिकारक कार्योमें रुकना, छेदना, तोड़ना, भेदना या अन्य कोई वैसा करे तो हर्षित होना सो आरंभ क्रिया है। (२२) परिग्रह क्रिया-परिग्रहका कुछ भी नाश न हो ऐसे उपायोंमे लगे रहना सो परिग्रह क्रिया है। (२३) माया क्रिया-मायाचारसे ज्ञानादि गुणोंको छिपाना । (२४) मिथ्यादर्शन क्रिया-मिथ्यादृष्टियोंकी तथा मिथ्यात्वसे परिपूर्ण कार्योकी प्रशंसा करना सो मिथ्यादर्शन क्रिया है । __(२५) अप्रत्याख्यान क्रिया-जो त्याग करने योग्य हो उसका त्याग न करना सो अप्रत्याख्यान क्रिया है । (प्रत्याख्यानका अर्थ त्याग है, विषयोके प्रति आसक्तिका त्याग करनेके बदले उसमें आसक्ति करना सो अप्रत्याख्यान है) नोट:-नं. १० की क्रियाके नीचे जो नोट है वह नं० ११ से २५ तककी क्रियामे भी लागू होता है ।
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
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