SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 546
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४६६ मोक्षशास्त्र नहीं, परन्तु ऐसा किसलिये मानना कि कालाणु समस्त लोकमें हैं ? उत्तर—— जगत में आकाशके एक २ प्रदेश पर अनेक पुद्गल परमाणु और उतने ही क्षेत्रको रोकनेवाले सूक्ष्म अनेक पुद्गल स्कंध हैं और उनके परिणमन में निमित्त कारण प्रत्येक आकाशके प्रदेशमें एक एक काला होना सिद्ध होता है । प्रश्न- - एक प्रकाशके प्रदेशमें अधिक कालागु स्कंधरूप माननेमें क्या विरोध श्राता है ? उत्तर — जिसमें स्पर्श गुरण हो उसी में स्कंधरूप बन्ध होता है और वह तो पुद्गल द्रव्य है । कालापु पुद्गल द्रव्य नहीं, अरूपी है; इसलिये उसका स्कन्ध ही नही होता । क. अधर्मास्तिकाय और धर्मास्तिकायकी सिद्धि ५-६ जीव और पुद्गल इन दो द्रव्योंमें क्रियावती शक्ति होनेसे उनके हलन चलन होता है, किन्तु वह हलन चलन रूप क्रिया निरन्तर नहीं होती । वे किसी समय स्थिर होते और किसी समय गतिरूप होते हैं; क्योंकि स्थिरता या हलन चलनरूप क्रिया गुरण नही है किन्तु क्रियावती शक्तिकी पर्याय है । उस क्रियावती शक्तिकी स्थिरतारूप परिणमनका मूलकारण द्रव्य स्वयं है, उसका निमित्तकारण उससे अन्य चाहिये । यह पहले बताया गया है कि जगतमें निमित्तकारण होता ही है । इसीलिये जो स्थिरतारूप परिणमनका निमित्त कारण है उस द्रव्यको अधर्मंद्रव्य कहते है | क्रियावती शक्तिके हलन चलनरूप परिणमनका मूलकारण द्रव्य स्वयं है और हलन चलनमें जो निमित्त है उसे धर्मद्रव्य कहते हैं । हलन चलनका निमित्त कारण अधर्मद्रव्यसे विपरीत चाहिये और वह धर्मद्रव्य है । (१०) इन छह द्रव्योंके एक ही जगह होनेकी सिद्धि हमने पहले जीव- पुद्गलकी सिद्धि करनेमे मनुष्यका दृष्टान्त लिया था उस परसे यह सिद्धि सरल होगी । (१) जीव ज्ञानगुण धारक पदार्थ है ।
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy