SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 51
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ KN UY 9 d० Vw0 ४६ सूत्र नम्बर विषय पत्र संख्या सूत्र २१-२२ का सिद्धान्त २३ मनःपर्यय ज्ञानके भेद २४ ऋजुमति और विपुलमतिमें अन्तर २५ अवधिज्ञान और मनःपर्ययज्ञानमें विशेषता २६ मति-श्रुतज्ञानका विषय २७ अवधिज्ञानका विषय । २८ मनःपर्ययज्ञानका विषय सूत्र २७-२८ का सिद्धान्त १८ २६ केवलज्ञानका विषय केवली भगवानके एक ही ज्ञान होता है या पॉचों सूत्र २६ का सिद्धान्त ३० एक जीवके एक साथ कितने ज्ञान हो सकते हैं ? १०० सूत्र 8 से ३० तकका सिद्धान्त १०१ ३१ मति, श्रुत और अवधिज्ञानमें मिथ्यात्व भी होता है ३२ मिथ्यादृष्टि जीवके ज्ञानको मिथ्या क्यों कहा ? कारणविपरीतता, स्वरूपविपरीतता, भेदाभेदविपरीतता, १०४-५ इन तीनोंको दूर करनेका उपाय १०५ सत् असत् , ज्ञानका कार्य, विपरीत ज्ञानके दृष्टान्त १०६-१०८ ३३ प्रमाणका स्वरूप कहा, श्रुतज्ञानके अंशरूप नयका स्वरूप । कहते हैं १०६ अनेकान्त, स्याद्वाद और नयकी व्याख्या नैगमादि सात नयोंका स्वरूप १०६ नयके तीन प्रकार (शब्द-अर्थ और ज्ञाननय ) १११-११२ श्रीमद् राजचन्द्रजीने श्रात्माके सम्बन्धमें इन सात नयोंको चौदह प्रकारसे कैसे उत्तम ढगसे अवतरित किये हैं ? वास्तविकभाव लौकिकभावोंसे विरुद्ध ११३ पाँच प्रकारसे जैन शास्त्रोंके अर्थ समझानेकी रीति ११३ १०२ १०६ ११२
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy