SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 496
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मोक्षशास्त्र परत्व- -जिसे बहुत समय लगे उसे परत्व कहते हैं । अपरत्व - जिसे थोड़ा समय लगे उसे अपरत्व कहते हैं । इन सभी कार्योका निमित्त कारण काल द्रव्य है । वे कार्य काल को बताते हैं । ४१६ (३) प्रश्न - परिणाम आदि चार भेद वर्तनाके हो हैं इसलिये एक वर्तना कहना चाहिये ? उत्तर- - काल दो तरहका है, निश्चयकाल और व्यवहारकाल | उनमें जो वर्तना है सो तो निश्चयकालका लक्षण है और जो परिणाम आदि चार भेद हैं सो व्यवहारकालके लक्षण हैं । यह दोनों प्रकारके काल इस सूत्र बताये है । - (४) व्यवहारकाल - जीव पुद्गल के परिणामसे प्रगट होता है । व्यवहारकालके तीन भेद हैं भूत, भविष्यत्, और वर्तमान । लोकाकाश एक एक प्रदेशमें एक २ भिन्न भिन्न असंख्यात कालाणु द्रव्य हैं, वह परमार्थं काल—निश्चयकाल है । वह कालाणु परिणति सहित रहता है । (५) उपकारके सूत्र १७ से २२ तकका सिद्धांत कोई द्रव्य परद्रव्यकी परिणतिरूप नहीं वर्तता, स्वयं अपनी परिगतिरूप ही प्रत्येक द्रव्य वर्तता है । परद्रव्य तो बाह्य निमित्तमात्र है, कोई द्रव्य दूसरे द्रव्यके क्षेत्रमें प्रवेश नहीं करता ( अर्थात् निमित्त परका कुछ कर नहीं सकता ) ये सूत्र निमित्तनैमित्तिक सम्बन्ध बतलाता है । धर्म, अधर्म, आकाश, पुद्गल, जीव और कालके परके साथके निमित्त सम्बन्ध बतानेवाले लक्षरण वहाँ पर कहे है । (६) प्रश्न- "काल वर्तानेवाला है" ऐसा कहनेसे उसमें क्रिया-वानपना प्राप्त होता है ? ( अर्थात् काल पर द्रव्यको परिणमाता है, क्या ऐसा उसका अर्थ हो जाता है ? ) उत्तर—वह दूषण नहीं आता । निमित्तमात्रमें सहकारी हेतुका कथन (व्यपदेश), किया जाता है, जैसे यह कथन किया जाता है कि जाड़ों
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy