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________________ अध्याय ४ उपसंहार ३८३ सूत्रकी व्याख्यामे यह कहा है कि-इसप्रकार निश्चयको अंगीकार कराने के लिए व्यवहारसे उपदेश देते है किन्तु व्यवहारनय अंगीकार करने योग्य नहीं है। -मोक्षमार्ग प्रकाशक । मुमुक्षुओंका कर्तव्य आजकल इस पंचमकालमे इस कथनको समझनेवाले सम्यग्ज्ञानी गुरुका निमित्त सुलभ नही है, किन्तु जहाँ वे मिल सके वहाँ उनके निकट से मुमुक्षुओको यह स्वरूप समझना चाहिए और जहाँ वे न मिल सकें वहाँ शाखोंके समझनेका निरंतर उद्यम करके इसे समझना चाहिए। सत् शास्त्रों का श्रवण, पठन, चितवन करना, भावना करना, धारण करना, हेतु युक्ति के द्वारा नय विवक्षाको समझना, उपादान निमित्तका स्वरूप समझना और वस्तु के अनेकान्त स्वरूपका निश्चय करना चाहिए । वह सम्यग्दर्शन की प्राप्तिका मुख्य कारण है, इसलिये मुमुक्षु जीवोको उसका निरंतर उपाय करना चाहिये। इसप्रकार श्री उमास्वामी विरचित मोक्षशास्त्र के चौथे अध्यायकी टीका समाप्त हुई।
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
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