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________________ अध्याय ४ सूत्र २१ ( ३ ) ऊपरके तियंच- सम्यग्दृष्टि (स्वयंप्रभाचल से बाहरके भागमे रहनेवाले ) ( ४ ) भोगभूमिके मनुष्य, तियंच - मिथ्यादृष्टि या सासादन गुणस्थानवाले ( ५ ) तापसी ( ६ ) भोगभूमिके सम्यग्दृष्टि. मनुष्य या तियंच ( ७ ) कर्मभूमिके मनुष्यमिथ्यादृष्टि अथवा सासादन ( ८ ) कर्मभूमिके मनुष्य - जिनके द्रव्य ( बाह्य ) जिनलग और भाव मिथ्यात्व या सासादन होते है ऐसे- ( 8 ) जो अभव्य मिथ्यादृष्टि निग्रंथ लिंग धारण करके महान् शुभभाव और तप सहित हों वे - ( १० ) परिव्राजक तापसियोंका उत्कृष्ट उपपाद ( ११ ) आजीवक ( कांजीके अहारी ) का उपपाद ( १२ ) सम्यग्दर्शन -ज्ञान चारित्रकी प्रकर्षतावाले श्रावक ३५७ सौधर्मादिसे अच्युत स्वर्ग पर्यंत ज्योतिषियों में ज्योतिषियों में सौधर्म और ऐशान में भवनवासीसे उपरिम ग्रैवेयक तक ग्रैवेयक पर्यन्त उपरिम (नवमे ) ग्रैवेयकमे 1 ब्रह्म (पंचम) स्वर्गपर्यंत बारहवें स्वर्गं पर्यन्त सौधर्मादिसे अच्युत तक ( उससे नीचे या ऊपर नही )
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
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