SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 424
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ . मोक्षशास्त्र ... २. जो देव युवराजसमान अथवा इन्द्र समान होते हैं अर्थात् जो देव इन्द्र जैसा कार्य करते हैं उन्हें प्रतीन्द्र कहते हैं। [ त्रिलोकप्रज्ञप्ति, पृष्ठ ११८-११९ ] ३. श्री तीर्थंकरभगवान सौ इन्द्रोंसे पूज्य , होते हैं वे सौ इन्द्र निम्नलिखित है। ४० भवनवासियोंके-बीस इन्द्र और बीस प्रतीन्द्र । ३२ व्यन्तरोंके-सोलह इन्द्र और सोलह प्रतीन्द्र । २४ सोलह स्वर्गोमेंसे-प्रथमके चार देवलोकोंके चार, मध्यमके आठ देवलोकोंके चार और अन्तके चार देवलोकोंके चार इसप्रकार बारह इन्द्र और बारह प्रतीन्द्र । २ ज्योतिषी देवोंके-चन्द्रमा इन्द्र और सूर्य प्रतीन्द्र । १ मनुष्योंके-चक्रवर्ती इन्द्र । __१ तिर्यंचोंके अष्टापद-सिंह इन्द्र । १०० देवोंका काम सेवन संबंधी वर्णन कायप्रवीचारा आ ऐशानात् ॥ ७ ॥ अर्थ-ऐशानस्वर्गतकके देव ( अर्थात् भवनवासी, व्यन्तर, ज्योतिषी, और पहिले तथा दूसरे स्वर्गके देव ) मनुष्योंकी भांति शरीरसे काम सेवन करते है। टीका देवोंमें संततिकी उत्पत्ति गर्भद्वारा नहीं होती, तथा वीर्य और दूसरी धातुओंसे बना हुआ शरीर उनके नही होता, उनका शरीर वैक्रियिक होता है। केवल मनकी कामभोगरूप वासना तृप्त करनेके लिये वे यह उपाय करते है। उसका वेग उत्तरोत्तर मंद होता है इसलिये थोड़े ही साधनोंसे यह वेग मिट जाता है । नीचेके देवोंकी वासना तीन होती है इसलिये वीर्य
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy