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________________ ३३४ मोक्षशास्त्र अंतमें त्रस पर्यायका काल (-दो हजार सागरोपम ) पूरा करके एकेंद्रियत्व पावेगा। वहां अधिकसे अधिक काल ( उत्कृष्ट रूपसे असंख्यात पुद्गलपरावर्तन काल ) तक रहकर एकेन्द्रियपर्याय ( शरीर ) धारण करेगा ॥ ३८ ॥ तिर्यंचों की आयुस्थिति तिर्यग्योनिजानां च ॥ ३४ ॥ अर्थ-तियंचोंकी आयु की उत्कृष्ट तथा जघन्य स्थिति उतनी ही ( मनुष्यों जितनी ) है। टीका तिर्यंचोंकी आयुके उपविभाग निम्नप्रकार हैं:जीवकी जाति उत्कृष्ट आयु (१) पृथ्वीकाय २२००० वर्ष (२) वनस्पतिकाय १०००० वर्ष (३) अपकाय ७००० वर्ष (४) वायुकाय ३००० वर्ष (५) अग्निकाय ३ दिवस (६) दो इन्द्रिय १२ वर्ष (७) तीन इन्द्रिय ४६ दिवस (८) नुरिन्द्रिय ६ मास (C) नेन्द्रिय १. गर्मभूमि पशु असंशी पंचेन्द्रिग माली यादि १ फरोटपून गर्ग २. परिमान जानि म सांग गर्ष ४२००० यम ४. पी ७२००० पर 2. भागमणि पोरा प्राणी
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
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