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________________ अध्याय ३ सूत्र ३६ ३२५ इत्यादि स्वप्न अशुभ स्वप्न है; उसके दर्शनसे आगामी कालमें जीवन-मरण, सुख-दुःखादिका ज्ञान होना सो स्वप्ननिमित्तज्ञान है। इन पाठ प्रकारके निमित्तज्ञानका जो ज्ञाता हो उसके अष्टागनिमित्तबुद्धिऋद्धि है। (१६) प्रज्ञाक्षमणत्वबुद्धि-किसी अत्यन्त सूक्ष्म अर्थके स्वरूप का विचार जैसाका तैसा, चौदहपूर्वधारी ही निरूपण कर सकते हैं दूसरे नही कर सकते, ऐसे सूक्ष्म अर्थका जो संदेहरहित निरूपण करे ऐसी प्रकृष्ट श्रुतज्ञानावरण और वीर्यान्तरायके क्षयोपशमसे प्रगट होनेवाली प्रज्ञाशक्ति प्रज्ञाश्रवणत्वबुद्धि है। (१७) प्रत्येकवुद्धितावृद्धि-परके उपदेशके बिना अपनी शक्तिविशेषसे ज्ञान-संयमके विधानमे निपुण होना प्रत्येकबुद्धताबुद्धि है। (१८)वादित्वबुद्धि-इन्द्र इत्यादि पाकर वाद-विवाद करे उसे निरुत्तर करदे, स्वयं रुके नही और सामनेवाले वादीके छिद्रको जान लेना ऐसी शक्ति वादित्वबुद्धि है । __इसप्रकार - ऋद्धियोमेसे पहिली बुद्धिरिद्धिके अठारह प्रकार हैं। यह बुद्धिरिद्धि सम्यग्ज्ञानको महान् महिमाको बताती है। ४. दूसरी क्रियाऋद्धिका स्वरूप १. क्रियाऋद्धि दो प्रकारकी है आकाशगामित्व और चारण । (१) चारण ऋद्धि अनेक प्रकार की है-जलके ऊपर पैर रखने या उठाने पर जलकायिक जीवोंको बाधा न उत्पन्न हो सो जलचारणरिद्धि है । भूमिसे चार अंगुल ऊपर आकाशमें शीघ्रतासे सैकड़ों योजन गमन करनेमे समर्थ होना सो जंघाचारणरिद्धि है। उसीप्रकार तंतुचारण, पुष्पचारण, पत्रचारण, श्रेणिचारण, अग्निशिखाचारण इत्यादि चारण रिद्धियाँ है । पुष्प, फल इत्यादिके ऊपर गमन, करनेसे उन पुष्प फल इत्यादि के जीवोको बाधा नहीं होना सो समस्तचारणरिद्धि है। (२) आकाशगामित्व विक्रियाऋद्धि-पर्यंकासन अथवा कायोत्सर्गासन करके पगके उठाये धरे बिना ही आकाशमै गमन करनेमे निपुण होना सो आकाशगामित्वक्रियाऋद्धि है।
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
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