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________________ ३१६ मोक्षशास्त्र ३. हैमवत्क्षेत्र २१०५५ " ४. महा हिमवत् कुलाचल ४२१०११ " ५. हरिक्षेत्र ८४२१११ ६. निषध कुलाचल १६८४२२ " ७. विदेहक्षेत्र ३३६८४१ " ८. नील कुलाचल १६८४२१९ " ६. रम्यक् क्षेत्र ८४२१११ " १०. रुक्मिकुलाचल ४२१०१३ " ११. हैरण्यक्षेत्र २१०५१ १२. शिखरीकुलाचल १०५२१३ " १३. ऐरावतक्षेत्र ५२६१६ ॥ xxxxxx [ कुलाचलका अर्थ पर्वत समझना चाहिये ] ___ भरत और ऐरावतक्षेत्र में कालचक्रका परिवर्तन भरतैरावतयोवृद्धिहासौ षट्समयाभ्यामुत्सर्पिण्यवस पिणीभ्याम् ॥ २७॥ __ अर्थ-छह कालोंसे युक्त उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी के द्वारा भरत और ऐरावत क्षेत्रमें जीवोंके अनुभवादि की वृद्धि-हानि होती रहती है। टीका १. बोस कोड़ा कोड़ी सागरका एक कल्पकाल होता है उसके दो भेद हैं; (१)-उत्सर्पिणी-जिसमें जीवोंके ज्ञानादि की वृद्धि होती है, और (२)-प्रवसर्पिणी-जिसमें जीवोके ज्ञानादिका ह्रास होता है।
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
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