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________________ मोक्षशास्त्र उत्तर-पहिले उन जीवोंने अपने पुरुषार्थकी बहुत विपरीतता की है और वे वर्तमानमें अपनी भूमिकाके अनुसार मंद पुरुषार्थ करते हैं इसलिये उन्हें ऊपर चढ़नेमे विलम्ब होता है। ७. प्रश्न- सम्यग्दृष्टिको नरकमें कैसा दुःख होता है ? उत्तर-नरक या किसी क्षेत्रके कारण किसी भी जीवको सुख दुःख नही होता किंतु अपनी नासमझीके कारण दुःख और अपनी सच्ची समझके कारण सुख होता है किसी को पर वस्तुके कारण सुख दुःख या हानि लाभ हो ही नहीं सकता । अज्ञानी नारकी जीवको जो दुःख होता है वह अपनी विपरीत मान्यतारूप दोषके कारण होता है, बाह्य-संयोगके अनुसार या संयोगके कारण दुःख नही होता। अज्ञानी जीव परवस्तुको कभी प्रतिकूल मानते हैं और इसलिये वे अपनी अज्ञानताके कारण दुःखी होते हैं, और कभी पर वस्तुएँ अनुकूल हैं ऐसा मानकर सुखकी कल्पना करते हैं; इसलिये अज्ञानी जीव परद्रव्योंके प्रति इष्टत्व-अनिष्टत्वकी कल्पना करते है। सम्यग्दृष्टि नारकी जीवोंके अनंत संसारका बंधन करनेवाली कषाय दूर होगई है स्वरूपाचरणकी आंशिक शांति निरंतर है इसलिये उतना सच्चा सुख उन्हें नरकमें भी निरन्तर मिलता है। जितनी कषाय है उतना अल्प दुःख होता है किंतु वह कुछ भवोंके बाद ही उस अल्प दुःखका भी नाश कर देगे। वे परको दुःखदायक नहीं मानते, किंतु अपनी असावधानी को दुःखका कारण मानते हैं इसलिये वे अपनी असावधानीको दूर करते जाते हैं । असावधानी दो प्रकार की है-स्वरूपकी मान्यताकी और स्वरूप के आचरणकी। उसमेंसे पहिले प्रकारकी असावधानी सम्यग्दर्शनके प्रगट होने पर दूर हो जाती है और दूसरे प्रकारको असावधानीको वे टालते जाते हैं। ८. सम्यग्दर्शन प्रगट करके-सम्यग्दृष्टि होनेके बाद जीव नरक आयुका बंध नहीं कर ता, किंतु सम्यग्दर्शनके प्रगट करनेसे पूर्व उस जीवने
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
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