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________________ मोक्षशास्त्र & - इस शास्त्र में निमित्तको किसी स्थान पर 'निमित्त' नामसे ही कहा गया है । [ देखो ० १ सू० १४ ] और किसी स्थान पर उपकार, उपग्रह, इत्यादि नामसे कहा गया है, [, देखो प्र० ५ सू० १७ से २० ], भावअपेक्षामें उसका एक ही अर्थ होता है, किन्तु अज्ञानी जीव यह मानते हैं कि एक वस्तुसे दूसरी वस्तुका भला-बुरा होता है; यह बतानेके लिये उसे 'उपकार' सहायक, बलाधान, बहिरंगसाधन; बहिरंगकारण, निमित्त और निमित्तकारण इत्यादि नामसे सम्बोधित करते हैं; किन्तु इससे यह नहीं मान लेना चाहिये कि वे वास्तविक कारण या साधन हैं । एक द्रव्य को, उसके गुणोंको या उसकी पर्यायोंको दूसरेसे पृथक करके दूसरेके साथ का उसका संयोगमात्र सम्बन्ध बतानेके लिये उपरोक्त नामोंसे सम्बोधित 'किया जाता है । इन्द्रियोंको धर्मास्तिकायको, अधर्मास्तिकाय इत्यादिको, बलाधानकारणके नामसे भी पहिचाना जाता है; किन्तु वह कोई भी सच्चा कारण नही है; फिर भी 'किसी भी समय उनकी मुख्यता से कोई कार्य होता है' ऐसा मानना निमित्तको ही उपादान माननेके बुराब्र अथवा व्यवहारा को ही निश्चय मानने के बराबर है । २६६ - १० - उपादानकारणके योग्य निमित्त संयोगरूपसे उस उस समय अवश्य होते हैं । ऐसा सम्बन्ध उपादान कारणकी उस समयकी परिणमन शक्तिको, जिस पर निमित्तत्वका आरोप आता है उसके साथ है । उपादान को अपने परिणमनके समय उन उन निमित्तोंके प्रानेके लिये राह देखनी पड़े और वे न नायें तब तक उपादान नही परिरणमता, ऐसी मान्यता उपादान और निमित्त इन दो द्रव्योंको एकरूप माननेके बराबर है । ११ – इसीप्रकार घड़ेका कुम्भकार के साथ और रोटीका अग्नि, रसोइया इत्यादिके साथका निमित्त नैमित्तिक संबंध समझ लेना चाहिये । सम्यग्ज्ञान प्रगट करनेके लिये जीवने स्वयं अपने पुरुषार्थसे पात्रता प्राप्त कीहो फिर भी उसे सम्यग्ज्ञान प्रगट करनेके लिये सद्गुरुकी राह देखनी पड़े ऐसा नही होता, किन्तु वह सयोगरूपसे उपस्थित होता ही है; इसलिये जब बहुतसे जीव धर्म प्राप्त करनेके लिये तैयार होते हैं तब तीर्थंकर भगवान
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
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