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________________ २८५ अध्याय २ उपसंहार ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती तथा अन्तिम अर्धचक्रवर्ती वासुदेव आयुके अपवर्तन होने पर मरणको प्राप्त हुये थे। ६-भरत और बाहुबलि तद्भवमोक्षगामी जीव हुये हैं, इसलिये परस्परमें लड़ने पर भी उनकी आयु बिगड़ सकती नहीं-ऐसा कहा है वह बताता है कि 'उत्तम' शब्दका तद्भवमोक्षगामो जीवोंके लिये ही प्रयोग किया गया है। . ७–सभी सकलचक्रवर्ती और अर्धचक्रवर्ती, अनपवर्तन आयुवाले होते हैं ऐसा नियम नही है। ८-सर्वार्थसिद्धि टीकामें श्री पूज्यपाद आचार्य देवने' 'उत्तम' शब्दका अर्थ किया है। इसलिये मूल सूत्र में वह शब्द है यह सिद्ध होता है। श्री अमृतचन्द्राचार्य देवने तत्त्वार्थसारके दूसरे अध्यायकी १३५ वीं गाथामें उत्तम शब्दका प्रयोग किया है, वह गाथा निम्नप्रकार है असंख्येय समायुक्ताश्चरमोचममूर्तयः देवाश्च नारकाश्चैषाम् अपमृत्युन विद्यते ॥१३शा उपसंहार (१) इस अध्यायमें जीवतत्वका निरूपण है, उसमें प्रथम ही जीव के प्रीपशमिकादि पाँच भावोंका वर्णन किया है [ सूत्र १ ] पांच भावोंके ५३ भेद सात सूत्रोंमें कहे हैं [ सूत्र ७ तक ] तत्पश्चात् जीवका प्रसिद्ध लक्षण उपयोग बतलाकर उसके भेद कहे हैं [ सूत्र ६ ] जीवके संसारी और मुक्त दो भेद कहे हैं [ सूत्र १० ] उनमेसे संसारी जीवोके भेद सैनी असैनी तथा त्रस स्थावर कहे हैं, और त्रसके भेद दो इन्द्रियसे पंचेन्द्रिय तक बतलाये हैं, पाँच इन्द्रियोंके द्रव्येन्द्रिय, और भावेन्द्रिय ऐसे दो भेद कहे हैं, और उसके विषय बतलाये हैं [ सूत्र २१ तक ] एकेन्द्रियादि जीवोंके कितनी इन्द्रियां होती हैं इसका निरूपण किया है [ सूत्र २३ तक ] श्रीर फिर सैनी जीवोंका तथा जीव परभवगमन करता है। उसका (गमनका ) स्वरूप कहा है [ सूत्र ३० तक ] तत्पश्चात् जन्मके भेद, योनिके भेद, तथा गर्भज, देव, नारकी, और सम्पूर्छन जीव कैसे उत्पन्न होते हैं इसका
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
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