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________________ अध्याय २ सूत्र ५२-५३ अन्य कितने लिंगवाले हैं ? शेषास्त्रिवेदाः || ५२ ॥ अर्थ - [ शेषाः ] शेषके गर्भज मनुष्य और तिथंच [ त्रिवेदा: ] तीनों वेदवाले होते है । २८३ टीका भाववेदके भी तीन प्रकार है- (१) पुरुषवेदकी कामाग्नि तृणकी अग्निके समान जल्दी शांत हो जाती है, (२) स्त्रीवेदकी कामाग्नि अंगारके समान गुप्त और कुछ समयके बाद शांत होती है, ओर (३) नपुंसकवेदकी कामाग्नि इंटकी नागके समान बहुत समयतक बनी रहती है ॥५२॥ किनकी आयु अपवर्तन (-अकालमृत्यु ) रहित है ? औपपादिकचरमोत्तम देहाऽसंख्येयवर्षायुषो ऽनपव त्यायुषः ॥ ५३ ॥ अर्थ - [ प्रोपपादिक ] उपपाद जन्मवाले देव और नारकी, [ चरम उत्तम देहाः ] चरम उत्तम देहवाले अर्थात् उसी भवमे मोक्ष जाने वाले तथा [ श्रसंख्येयवर्ष श्रायुषः ] असख्यात वर्ष आयुवाले भोगभूमिके जीवोंकी [ प्रायुषः अनपर्वात ] आयु अपवर्तन रहित होती है । टीका १-आठ कर्मों में आयुनामका एक कर्म है । भोग्यमान (भोगी जानेवाली) आयु कर्मके रजकरण दो प्रकारके होते हैं-सोपक्रम और निरुपक्रम । उनमेसे श्रायुके प्रमाण मे प्रतिसमय समान निषेक निर्जरित होते हैं, उस प्रकारका आयु निरुपक्रम अर्थात् अपवर्तन रहित है; और जिस आयुकर्मके भोगने पहिले तो समय समयमें समान निषेक निर्जरित होते हैं परन्तु उसके प्रतिमभागमें बहुतसे निषेक एकसाथ निर्जरित हो जाये उसी प्रकारकी आयु सोपक्रम कहलाती है । आयुकर्मके बधमें ऐसी विचित्रता है कि जिसके निरुपक्रम आयुका उदय हो उसके समय समय समान निर्जरा होती है इस
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
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