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________________ २५६ मोक्षशास्त्र उल्टी सुल्टी इन्द्रियाँ किसी जीवके नहीं होती हैं । जैसे केवल स्पर्शन और चक्षु, यह दो इन्द्रियां किसी जीवके नहीं हो सकती किन्तु यदि दो होगी तो वे स्पर्शन और रसना ही होगी । सैनी जीवोंके मनबल होता है इसलिये उनके दश प्रारण होते हैं ॥ १४ ॥ इन्द्रियोंकी संख्या पंचेन्द्रियाणि ॥ १५ ॥ अर्थ = [ इन्द्रियाणि ] इन्द्रियां [ पंच ] पाँच हैं । टीका Agenda १ इन्द्रियाँ पाँच हैं । अधिक नही । 'इन्द्र' अर्थात् श्रात्माकी अर्थात् संसारी जीवकी पहिचान करानेवाला जो चिह्न है उसे इन्द्रिय कहते हैं । प्रत्येक द्रव्येन्द्रिय अपने अपने विषयका ज्ञान उत्पन्न होनेमे निमित्त कारण है । कोई एक इन्द्रिय किसी दूसरी इन्द्रियके आधीन नहीं है । भिन्न भिन्न एक एक इन्द्रिय परकी अपेक्षासे रहित है अर्थात् अहमिन्द्रकी भांति प्रत्येक अपने अपने श्राधीन है ऐसा ऐश्वर्य धारण करती हैं । प्रश्न- -वचन, हाथ, पैर, गुदा, और लिंगको भी इन्द्रिय क्यों नहीं कहा ? magpangka उत्तर - यहाँ उपयोगका प्रकरण है । उपयोगमें स्पर्शादि इंद्रियाँ निमित्त है इसलिये उन्हें इन्द्रिय मानना ठीक है । वचन इत्यादि उपयोगमें निमित्त नही हैं वे मात्र 'जड़' क्रियाके साधन हैं, और यदि क्रियाके कारण होनेसे उन्हे इन्द्रिय कहा जाय तो मस्तक इत्यादि सभी प्रांगोपांग (क्रिया के साधन ) हैं, उन्हें भी इंद्रिय कहना चाहिये । इसलिये यह मानना ठीक है कि जो उपयोगमें निमित्त कारण है वह इंद्रियका लक्षण है । २- जड़ इंद्रियाँ इद्रियज्ञानमें निमित्त मात्र है किन्तु ज्ञान उन इंद्रियोंसे नही होता, ज्ञान तो आत्मा स्वयं स्वतः करता है । क्षायोपशमिकज्ञानका स्वरूप ऐसा है कि वह ज्ञान जिस समय जिसप्रकारका उपयोग करनेके योग्य होता है तब उसके योग्य इंद्रियादि वाह्य निमित्त स्वयं स्वतः
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
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