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________________ २५४ मोक्षशास्त्र कायिक, अग्निकायिक, वायुकायिक और वनस्पतिकायिक यह पाँच प्रकार के [ स्थावराः ] स्थावर जीव हैं [ इन जीवोंके मात्र एक स्पर्शन इन्द्रिय होती है ] टीका १ - आत्मा ज्ञानस्वभाव है किंतु जब उसे अपनी वर्तमान योग्यता के कारण एक स्पर्शनेन्द्रियके द्वारा ज्ञान कर सकने योग्य विकास होता है। तब पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और वनस्पतिरूपमें परिगमित रजकरणों ( पुद्गलस्कंधों ) के द्वारा बने हुये जड़ शरीरका संयोग होता है | २ - पृथिवी, जल, अग्नि और वायुकायिक जीवोंके शरीरका नाप ( अवगाहना ) अंगुलके असंख्यातवें भाग प्रमारण है इसलिये वह दिखाई नहीं देता, हम उसके समूह ( Mass ) को देख सकते हैं । पानीको प्रत्येक बृन्दमें बहुतसे जलकायिक जीवोका समूह है। सूक्ष्मदर्शक यंत्र के द्वारा पानी में जो सूक्ष्म जीव देखे जाते हैं वे जलकायिक नहीं किन्तु त्रसजीव हैं । ३- इन पृथिवी आदिकोके चार चार भेद कहे गये है- (१) तहाँ अचेतन स्वभाव सिद्ध परिणाम से रचित अपने कठिनता गुरणसहित, जड़पनासे पृथिवीकायनामा नामकर्म के उदय न होने पर भी प्रथन- ( फैलाव ) आदिसे युक्त है वह पृथिवी है या पृथिवी सामान्य है । (२) जिस कायमें से पृथिवीकायिक जीव मरकर निकल गया है सो पृथिवीकाय है । (३) जिनने पृथिवी का शरीर धारण किया है वे पृथिवीकायिक जीव हैं | (४) पृथिवीके शरीरको धारण करनेसे पूर्व विग्रहगतिमें जो जीव है उसे पृथिवीजीव कहते हैं । इसप्रकार जलकायिक इत्यादि अन्य चार स्थावर जीवोके सम्बन्ध में भी समझ लेना चाहिए ।
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
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