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________________ २०२ मोक्षशास्त्र [धर्म, अधर्म, काल और आकाशके चयन और उपपाद,] धर्म, अधर्म, काल और आकाशके चयन और उपपादको जानते हैं, क्योकि, इनका गमन और प्रागमन नहीं होता। जिसमे जीवादि पदार्थ लोके जाते है अर्थात् उपलब्ध होते हैं उसकी लोक संज्ञा है। यहाँ 'लोक' शब्दसे आकाश लिया गया है । इसलिये आधेयमें आधारका उपचार करने से धर्मादिक भी लोक सिद्ध होते है । [बन्धको भी भगवान् जानते हैं;] बन्धनका नाम बन्ध है। अथवा जिसके द्वारा या जिसमे बंधते हैं उसका नाम बन्ध है । वह बन्ध तीन प्रकारका है-जीवबन्ध, पुद्गलबन्ध और जीव-पुद्गल बंध । एक शरीरमे रहनेवाले अनन्तानंत निगोद जीवोका जो परस्पर बन्ध है वह जीवबन्ध कहलाता है। दो तीन आदि पुद्गलोंका जो समवाय सम्बन्ध होता है वह पुद्गलवन्ध कहलाता है। तथा औदारिक वर्गणाएं, वैक्रियिक वर्गणाएं, आहारक वर्गणाएं, तैजस वर्गणाएं और कार्मण वर्गणाएं इनका और जीवोंका जो बंध होता है वह जीव-पुद्गलबन्ध कहलाता है। जिस कर्मके कारण अनन्तानंत जीव एक शरीर में रहते है उस कर्मकी जीवबन्ध सज्ञा है। जिस स्निग्ध और रूक्ष आदि गुणोके कारण पुद्गलोंका बन्ध होता है उसको पुद्गलबन्ध संज्ञा है। जिन मिथ्यात्व, असयम, कषाय और योग आदिके निमित्तसे जीव और पुद्गलों का बन्ध होता है वह जीव-पुद्गलबन्ध कहलाता है। इस बन्धको भी वे भगवान् जानते हैं। [मोक्ष ऋद्धि, स्थिति तथा युति और उनके कारणोंको भी जानते हैं,] छूटनेका नाम मोक्ष है, अथवा जिसके द्वारा या जिसमें मुक्त होते हैं वह मोक्ष कहलाता है । वह मोक्ष तीन प्रकारका है-जीवमोक्ष, पुद्गलमोक्ष और जीव-पुद्गलमोक्ष । इसी प्रकार मोक्षका कारण भी तीन प्रकार कहना चाहिए । बंध, बंधका कारण, बन्धप्रदेश, बद्ध एव बध्यमान जीव और पुद्गल; तथा मोक्ष,
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
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