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________________ अध्याय १ परिशिष्ट ३ १७७ और यदि उसके समझनेमे देर लगे तो क्या अशुभ भाव करके दुर्गतिका बन्ध करना चाहिए ? क्योंकि आप शुभ भावोंसे धर्म होना तो मानते नही,-उसका निषेध करते है। उत्तर-पहिले तो, यह हो ही नहीं सकता कि यह बात समझमें न आये । हाँ यदि समझने में देर लगे तो वहाँ निरन्तर समझनेका लक्ष मुख्य रखकर अशुभ भावोंको दूर करके शुभभाव करनेका निषेध नही है, किन्तु मिथ्या श्रद्धाका निषेध है; यह समझना चाहिए कि शुभभावसे कभी धर्म नही होता। जबतक जीव किसी भी जड़ वस्तुकी क्रियाको और रागकी क्रियाको अपनी मानता है तथा प्रथम व्यवहार करते करते बादमें निश्चय धर्म होगा ऐसा मानता है तबतक वह यथार्थ समझके मार्ग पर नहीं है, किन्तु विरुद्धमे है। - सुखका मार्ग सच्ची समझ, विकारका फल जड़ यदि आत्माकी सच्ची रुचि हो तो समझका मार्ग लिये बिना न रहे । यदि सत्य चाहिए हो, सुख चाहिए हो तो यही मार्ग है। समझनेमें भले देर लगे किन्तु सच्ची समझका मार्ग तो ग्रहण करना ही चाहिए । यदि सच्ची समझका मार्ग ग्रहण करे तो सत्य समझमे आये बिना रह ही नही सकता। यदि इस मनुष्य देहमें और सत्समागमके इस सुयोगमें भी सत्य न समझे तो फिर ऐसे सत्यका सुअवसर नही मिलता । जिसे यह खबर नहीं है कि मैं कौन हैं और जो यहां पर भी स्वरूपको चूक कर जाता है वह अन्यत्र जहाँ जायगा वहाँ क्या करेगा ? शान्ति कहाँसे लायगा? कदाचित् शुभभाव किए हो तो उस शुभका फल जडमें जाता है, आत्मामें पुण्यका फल नही पहुँचता जिसने आत्माको चिन्ता नहीं की और जो यहीसे मूढ़ हो गया है इसलिए उन रजकरणोके फलमे भी रजकरणोंका संयोग ही मिलेगा। उन रजकरणोके संयोगमें आत्माका क्या लाभ है ? मात्माकी शान्ति तो आत्मामे ही है किन्तु उसकी चिन्ता की नही है। • असाध्य कौन है ? और शुद्धात्मा कौन है ? अज्ञानी जीव जड़का लक्ष करके जड़वत् हो गया है इसलिए मरते २३
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
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