SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 194
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मोक्षशास्त्र शंका-'अभिप्राय' इसका क्या अर्थ है ? समाधान--प्रमाणसे गृहीत वस्तुके एक देशमे वस्तुका निश्चय ही अभिप्राय है। युक्ति अर्थात् प्रमाणसे अर्थके ग्रहण करने अथवा द्रव्य और पर्याय में से किसी एक को अर्थरूपसे ग्रहण करनेका नाम नय है । प्रमाणसे जानी हुई वस्तुके द्रव्य अथवा पर्यायमें वस्तुके निश्चय करनेको नय कहते है, यह इसका अभिप्राय है। (धवला टीका पुस्तक ६ पृष्ठ १६२-१६३ ) "प्रमाण और नयसे वस्तुका ज्ञान होता है. इस सूत्र द्वारा भी यह व्याख्यान विरुद्ध नहीं पड़ता। इसका कारण यह है कि प्रमाण और नयसे उत्पन्न वाक्य भी उपचारसे प्रमाण और नय है।" (ध० टी० पु० ६ पृष्ठ १६४ ) - [यहाँ श्री वीरसेनाचार्यने वाक्यको उपचारसे नय कहकर ज्ञानात्मक नयको परमार्थसे नय कहा है ] पंचाध्यायीमें भी नयके दो प्रकार माने हैद्रव्यनयो भावनयः स्यादिति भेदाद्विधा च सोऽपियथा । पौगलिकः किल शब्दो द्रव्यं भावश्च चिदिति जीवगुण ॥५०॥ "अर्थ-वह नय भी द्रव्यनय और भावनय इसप्रकारके भेदसे दो प्रकारका है, जैसे कि वास्तवमें पोद्गलिक शब्द द्रव्यनय कहलाता है तथा जीवका गुण जो चैतन्य यह है वह भावनय कहलाता है। अर्थात् नय ज्ञानात्मक और वचनात्मकके भेदसे दो प्रकारका है। उनमेसे वचनात्मक नय द्रव्यनय तथा ज्ञानात्मक नय भावनय कहलाता है।" स्वामी कातिकेय विरचित द्वादशानुप्रेक्षामें नयके तीन प्रकार कहे हैं। अव वस्तुके धर्मको, उसके वाचक शब्दको और उसके ज्ञानको नय कहते हैं:
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy