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________________ १४ मोक्षशास्त्र ___ मन पर्ययज्ञान विशिष्ट संयमधारीके होता है [श्री, धवला पुस्तक ६, पृष्ठ २८-२९ ] 'विपुल' का अर्थ विस्तीर्ण-विशाल-गंभीर होता है। HT उसमें कुटिल, असरल, विषम, सरल इत्यादि गभित हैं ] विपुलमतिज्ञान मैं ऋजु और वक्र ( सरल और पेचीदा ) सर्वप्रकारके रूपी पदार्थोका ज्ञान होता है। अपने तथा दूसरोंके जीवन-मरण, सुख-दुःख, लाभ-अलाभ, इत्यादिका भी ज्ञान होता है। विपुलमति मनःपर्ययज्ञानी व्यक्त अथवा अव्यक्त मनसे.चिंतित या अचिंतित अथवा आगे जाकर चिन्तवन किये जानेवाले सर्वप्रकारके पदार्थोंको जानता है । [ सर्वार्थसिद्धि पृष्ठ ४४८-४५१-४५२ ] ___कालापेक्षासे ऋजुमतिका विषय-जघन्यरूपसे भूत-भविष्यतके अपने और दूसरेके दो तीता भव. जानता, है, और उत्कृष्टरूपसे उसीप्रकार सात आठ भव जानता है । क्षेत्रापेक्षासे-यह ज्ञान जघन्यरूपसे तीनसे ऊपर और नो से नीचे कोस, तथा उत्कृष्टरूपसे तीनसे ऊपर और नो से नीचे योजनके भीतर जानता है । उससे बाहर नहीं जानता। कालापेक्षासे विपुलमतिका विषय-जघन्यरूपसे अगले' पिछले सात आठ भव जानता है और उत्कृष्टरूपसे अगले पिछले असख्यात भव जानता है। क्षेत्रापेक्षासे-यह ज्ञान जघन्यरूपसे तीनसे ऊपर और नो से नीचे योजन प्रमाण जानता है; और उत्कृष्टरूपसे मानुषोत्तरपर्वतके भीतर तक जानता है; उससे बाहर नही । [ सर्वार्थसिद्धि पृष्ठ ४५४ ] विपुलमतिका अर्थ-इंग्लिश तत्त्वार्थ सूत्र में निम्न प्रकार दिया है। Complex direct knowledge of complex mentai things. e.g. of what a man is thinking of now along with what he has thought of it in the past and will think of it in the future, [ पृष्ठ ४०]
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
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