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________________ ८४ मोक्षशास्त्र ' उत्तर-उसमें पहिला श्रु तज्ञान मतिपूर्वक हुआ था इसलिये दूसरा' श्रु तज्ञान भी मतिपूर्वक है ऐसा उपचार किया जा सकता है। सूत्रमें 'पूर्व' पहिले 'साक्षात्' शब्दका प्रयोग नहीं किया है, इसलिये यह समझना चाहिये कि श्रु तज्ञान साक्षात् मतिपूर्वक और परम्परामर्तपूर्वक-ऐसे दो प्रकारसे होता है। __ (७) भावश्रुत और द्रव्यश्रुत श्रु तज्ञानमे तारतम्यकी अपेक्षासे भेद होता है; और उसके निमित्त में भी भेद होता है। भावत और द्रव्यश्र त इन दोनोंमे दो अनेक और बारह भेद होते हैं । भविश्रतको भावांगम भी कह सकते हैं। और उसमें द्रव्यागम निमित्त होता है । द्रव्यागम (श्रत ) के दो भेद है; (१) अङ्ग प्रविष्ट और (२) अङ्गबाह्य । अङ्ग प्रविष्टके बारह भेद है। (८) अनक्षरात्मक और अक्षरात्मक श्रुतज्ञान- . अनक्षरात्मक श्र तंज्ञानके दो भेद है-पर्यायज्ञान और पर्यायसमास । सूक्ष्मनिगोदिया जीवके उत्पन्न होते समय जो-पहिले ‘समयमे सर्व जघन्य श्र तज्ञान होता है सो पर्याय ज्ञान है । दूसरा भेद पर्यायसमास है। सर्वजघन्यज्ञानसे अधिक ज्ञानको पर्यायसमास कहते हैं। [ उसके असंख्यात लोक प्रमाण भेद है ] निगोदिया जीवके सम्यक् श्रु तज्ञान नही होता; किन्तु मिथ्याश्रत होता है। इसलिये यह दो भेद सामान्य श्र तज्ञानकी अपेक्षा से कहे है ऐसा समझना चाहिये। (९) यदि सम्यक् और मिथ्या ऐसे दो भेद न करके-सामान्य मति तज्ञानका विचार करे तो प्रत्येक छद्मस्थ जीवके मति और श्रुतज्ञान' होता है। स्पर्शके द्वारा किसी वस्तुका ज्ञान होना सो मतिज्ञान है; और उसके सम्बन्धसे ऐसा ज्ञान होना कि 'यह हितकारी नही है या है' सो श्रु तज्ञान है, वह अनक्षरात्मक श्रु तज्ञान है । एकेन्द्रियादि असैनी जीवोंके अनक्षरात्मक श्रु तज्ञान ही होता है । सैनीपंचेन्द्रिय जीवोके दोनों प्रकारका श्र तज्ञान होता है।
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
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