SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 154
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७६ मोक्षशास्त्र इसलिये सूक्ष्म अवयवोंके साथ सम्बन्ध रहनेसे वह प्राप्त होकर ही पदार्थको ग्रहण करते है । इसीप्रकार अनिःसृत और अनुक्त पदार्थोके श्रवग्रह इत्यादि में भी अनिःसृत और अनुक्त पदार्थोंके सूक्ष्म अवयवोंके साथ श्रोत्र श्रादि इन्द्रियोंका अपनी उत्पत्तिमें परपदार्थोकी अपेक्षा न रखनेवाला स्वाभाविक संयोग सम्बन्ध है, इसलिये अनिःसृत और अनुक्त स्थलोंपर भी प्राप्त होकर इन्द्रिय पदार्थोका ज्ञान कराती हैं; अप्राप्त होकर नहीं । इस सूत्र के अनुसार मतिज्ञानके भेदोंकी संख्या निम्न प्रकार है अवग्रह, ईहा, अवाय और धारणा, = ४ पाँच इन्द्रिय और मन = ६ उपरोक्त छह प्रकारके द्वारा चार प्रकारसे ज्ञान ( ४x६ ) =२४ तथा विषयोंकी अपेक्षासे बहु बहुविध आदि बारह = ( २४ × १२ ) = २८८ भेद हैं ॥ १६ ॥ उपरोक्त अत्रग्रहादिके विषयभूत पदार्थ भेद किसके हैं ? अर्थस्य ॥१७॥ अर्थ — उपरोक्त बारह अथवा २८८ मेद [ अर्थस्य ] पदार्थके ( द्रव्यके वस्तुके ) हैं । टीका यह भेद व्यक्त पदार्थके कहे हैं; अव्यक्त पदार्थके लिये अठारहवाँ सूत्र कहा है । यदि कोई कहे कि - 'रूपादि गुरण ही इन्द्रियोंके द्वारा ग्रहण किये जा सकते हैं; इसलिये रूपादि गुरणोंका ही अवग्रह होता है, न कि द्रव्योंका' । तो यह कहना ठीक नही है; -यह यहाँ बताया गया है । 'इन्द्रियोके द्वारा रूपादि जाने जाते है' यह कहने मात्रका व्यवहार है; रूपादि गुरण द्रव्यसे प्रभिन्न है इसलिये ऐसा व्यवहार होता है कि 'मैंने रूपको देखा या मैंने गंध
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy