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________________ मोक्षशास्त्र हिन्दी टीका प्रस्तावना (१) शास्त्रके कर्ता और उसकी टीकाएँ १. इस मोक्षशास्त्रके कर्ता भगवान श्री उमास्वामी प्राचार्य है । भगवान श्री कुन्दकुन्दाचार्यदेवके वे मुख्य शिष्य थे। 'श्री उमास्वाति' के -नामसे भी वे पहिचाने जाते हैं। भगवान श्री कुन्दकुन्दाचार्यके पश्चात् वे आचार्य पद पर विराजमान हुए थे। वे विक्रम सम्वत्की दूसरी शताब्दीमें होगये हैं। २. जैन समाजमें यह शास्त्र अत्यन्त प्रसिद्ध है। इसकी एक विशेषता यह है कि जैन आगमोंमें संस्कृत भाषामें सर्वप्रथम इसी शाखकी रचना हुई है। इस शास्त्र पर श्री पूज्यपाद स्वामी, अकलंक स्वामी और श्री विद्यानन्दि स्वामी जैसे समर्थ आचार्यदेवोंने विस्तृत टीकाकी रचना की है। श्री सर्वार्थसिद्धि, राजवार्तिक, श्लोकवार्तिक, अर्थप्रकाशिका आदि ग्रन्थ इसी शास्त्रकी टीकाएँ हैं । बालकसे लेकर महापण्डितों तकके लिये यह शास्त्र उपयोगी है। इस शास्त्रकी रचना अत्यन्त आकर्षक है; अत्यल्प शब्दोमें प्रत्येक सूत्रकी रचना है और वे सूत्र सरलतासे याद रखे जा सकते हैं । अनेक जैन उन सूत्रोंको मुखाग्र करते है। जैन पाठशालामोंकी पाठ्य-पुस्तकोंमें यह एक मुख्य है। हिन्दीमें इस शास्त्रकी कई आवृत्तियाँ छप गई हैं। (२) शास्त्र के नामकी सार्थकता ३. इस शाखमें प्राचार्य भगवानने प्रयोजनभूत तत्त्वोंका वर्णन बड़ी खूबीसे भर दिया है । पथभ्रांत संसारी जीवोंको आचार्यदेवने मोक्षका मार्ग दर्शाया है। प्रारम्भमें ही 'सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्रकी एकता मोक्षमार्ग है'-ऐसा बतलाकर निश्चय सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
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