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________________ ७० • मोक्षशास्त्र (काँसेके वाद्यका शब्द) और सुषिर (बाँसुरी आदिका शब्द) इत्यादि शब्दों का एक साथ अवग्रह ज्ञान होता है । उसमें तत इत्यादि भिन्न भिन्न शब्दों का ग्रहण अवग्रहसे नहीं होता किन्तु उसके समुदायरूप सामान्यको वह ग्रहण करता है; ऐसा अर्थ यहां समझना चाहिये; यहाँ बहु पदार्थका अवग्रह हुआ। प्रश्न-संभिन्नसंश्रोतृऋद्धिके धारी जीवको तत इत्यादि प्रत्येक शब्दका स्पष्टतया भिन्न २ रूपसे ज्ञान होता है तो उसे यह अवग्रहज्ञान होना बाधित है ? उत्तर-यह ठीक नही है, सामान्य मनुष्यकी भांति उसे भी क्रमशः ही ज्ञान होता है। इसलिये उसे भी अवग्रह ज्ञान होता है। जिस जीवके विशुद्धज्ञान मंद होता है उसे तत आदि शब्दोंमेंसे किसी एक शब्दका अवग्रह होता है । यह एक पदार्थका अवग्रह हुआ। बहुविध-एकविध-उपरोक्त दृष्टांतमे 'तत' आदि शब्दोमें प्रत्येक शब्दके दो, तीन, चार, संख्यात, असंख्यात या अनन्त भेदोंको जीव ग्रहण करता है तब उसे 'बहुविध पदार्थका अवग्रह होता है। विशुद्धताके मंद रहने पर जीव तत आदि शब्दोंमेसे किसी एक प्रकारके शब्दोंको ग्रहण करता है उसे 'एकविध' पदार्थका अवग्रह होता है। क्षिप्र-अक्षिप्र-विशुद्धिके बलसे कोई जीव बहुत जल्दी शब्दको ग्रहण करता है उसे 'क्षिण' अवग्रह कहा जाता है। विशुद्धिकी मंदता होनेसे जीवको शब्दके ग्रहण करनेमें ढील होती है उसे 'अक्षिप्र' अवग्रह कहा जाता है । अनिःसृत-निःसृत-विशुद्धिके बलसे जीव जब बिना कहे अथवा बिना बताये ही शब्दको ग्रहण करता है तब उसे 'अनिःसृत' पदार्थका अवग्रह कहा जाता है। विशुद्धिकी मदताके कारण जीव मुखमेसे निकले हुए शब्दको ग्रहण करता है तब 'निःसृत' पदार्थका अवग्रह हुआ कहलाता है।
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
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