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________________ २४ मोक्षशास्त्र (२) सात तत्त्वोंमेंसे प्रथम दो तत्त्व-'जीव' और 'अजीव' द्रव्य हैं। तथा शेष पाँच तत्त्व उनकी (जीव और अजीवकी) सयोगी तथा वियोगी पर्यायें (विशेष अवस्थाये) हैं। आस्रव और बन्ध संयोगी हैं तथा संवर, निर्जरा और मोक्ष जीव-अजीवकी वियोगी पर्याय हैं। जीव और अजीव तत्त्व सामान्य है तथा शेष पाँच तत्त्व पर्याय होनेसे विशेष कहलाते है। (३) जिसकी दशाको अशुद्धमेसे शुद्ध करना है उसका नाम तो प्रथम अवश्य दिखाना ही चाहिये, इसलिये 'जीव' तत्व प्रथम कहा गया है। पश्चात् जिस ओरके लक्षसे अशुद्धता अर्थात् विकार होता है उसका नाम देना आवश्यक है, इसलिये 'अजीव तत्त्व कहा गया है। अशुद्ध दशाके कारण-कार्यका ज्ञान करानेके लिये 'यात्रव' और 'बंध तत्त्व कहे गये हैं। तत्पश्चात् मुक्तिका कारण कहना चाहिये; और मुक्तिका कारण वही हो सकता है जो वध और बंधके कारणसे उल्टे रूपमें हो; इसलिये आस्रवके निरोध होने को 'संवर' तत्त्व कहा है। अशुद्धता विकारके एक देश दूर हो जानेके कार्यको 'निर्जरा तत्त्व कहा है। जीवके अत्यन्त शुद्ध हो जाने की दशाको 'मोक्ष' तत्त्व कहा है। इन तत्त्वोंको समझनेकी अत्यन्त आवश्यकता है, इसीलिये वे कहे गये हैं। उन्हे समझनेसे जीव मोक्षोपायमें युक्त हो सकता है । मात्र जीव अजीवको जाननेवाला ज्ञान मोक्षमार्गके लिये कार्यकारी नही होता । इसलिये जो सच्चे सुखके मार्गमें प्रवेश करना चाहते है उन्हे इन तत्त्वोको ययार्थतया जानना चाहिये। (४) सात तत्त्वोंके होने पर भी इस सूत्रके अन्तमे 'तत्त्वम ऐसा एकवनन नूचर गव्द प्रयोग किया गया है, जो यह सूचित करता है कि न मात नत्त्वोका ज्ञान करके, भेद परसे लक्ष हटाकर, जीवके त्रिकालज्ञायक माना पायय करनेमे जीव शुद्धता प्रगट कर सकता है । (५) चौथ मन्त्रका सिद्धान्त मममम मान तन्य कहे गये हैं। उनमेसे पुण्य और पापका समावेश RT कर चोंगे हो जाता है। जिसके द्वारा सुत उत्पन्न हो और
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
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