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________________ 1 १०२ मंगलमन्त्र णमोकार ' एक अनुचिन्तन जैनदृष्टि से योगशास्त्रका वर्णन कर पातंजल योगशास्त्रकी अनेक बातो की तुलना जैन सकेतो के साथ की है । योगदृष्टिपमुच्चय में योगको आठ दृष्टियोका कथन है, जिनसे समस्त योग साहित्य में एक नवीन दिशा प्रदर्शित की गयी है। हेमचन्द्राचार्यने आठ योगागोंका जैन शैलोके अनुसार वर्णन किया है तथा प्राणायामसे सम्बन्ध रखनेवाली अनेक बातें बतलायी हैं । श्रीशुभचन्द्राचार्य ने अपने ज्ञानार्णवमें ध्यानके पिण्डस्थ, पदस्थ, रूपस्थ और रूपातीत भेदोका वर्णन विस्तारके साथ करते हुए मनके विक्षिप्त, यातायात, शिष्ट और सुलीन इन चारो भेदोका वर्णन बड़ी रोचकता और नवीन शैली में किया है । उपाध्याय यशोविजयने अध्यात्मसार, अध्यात्मोपनिषद् आदि ग्रन्थो में योग विषयका निरूपण किया है। दिगम्बर सभी आध्यात्मिक ग्रन्थो में ध्यान या समाधिका विस्तृत वर्णन प्राप्त है । 7 योग शब्द युज् धातुसे घन् प्रत्यय कर देनेसे सिद्ध होता है । युजके दो अर्थ है- जोडना और मन स्थिर करना । निष्कर्ष रूपमें योगको मनको स्थिरताके अर्थ में व्यवहृत करते हैं । हरिभद्र सूरिने मोक्ष प्राप्त करनेवाले साधनका नाम योग कहा है | पतंजलिने अपने योगशास्त्र में "योगश्चित्तवृत्तिनिरोध " - चित्तवृत्तिका रोकना योग वताया है । इन दोनो लक्षणोका समन्वय करनेपर फलितार्थ यह निकलता है कि जिस क्रिया या व्यापार के द्वारा ससारोन्मुख वृत्तियाँ रुक जायें और मोक्षकी प्राप्ति हो, योग है । अतएव समस्त आत्मिक शक्तियो का पूर्ण विकास करनेवाली क्रिया - आत्मोन्मुख चेष्टा योग है। योग के आठ अंग माने जाते हैं - यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि । इन योगागोके अभ्यास से मन स्थिर हो जाता है तथा उसकी शुद्धि होकर वह शुद्धोपयोगकी ओर बढता है या शुद्धोपयोगको प्राप्त हो जाता है | शुभचन्द्राचार्यने वतलाया है - 'यमादिपु कृताभ्यासो निःसङ्गो निर्ममो मुनि । रागादिक्लेशनिर्मुक्तं करोति स्ववशं मनः ॥
SR No.010421
Book TitleMangal Mantra Namokar Ek Anuchintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1967
Total Pages251
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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