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________________ १०० मगलमन्त्र णमोकार · एक अनुचिन्तन प्रकार एक परमाणुमें त्रिकोणाकृति। और यही कारण है कि इस महामन्त्र. की आराधनाते सभी प्रकारके शुभ और आत्म नुभवरूप शुद्ध फल प्राप्त होते हैं। इसीलिए यह सब मन्त्रोमें प्रधान और अन्य मन्त्रोका जनक है - ____ एवं श्रीपञ्चपरमेष्ठीनमस्कारमहामन्त्र सकलसमीहितार्थ-प्रापणकल्पदुमाभ्यधिकमहिमाशान्तिपौष्टिकाद्यष्टकर्मकृत् । ऐहिकपारलौकिकस्वामिमतार्थसिद्धये यथा श्रीगुर्वाम्नाय जातव्यः । अर्थात्-यह णमोकार मन्त्र, जिसे पंचपरमेष्टीको नमस्कार किये जानेके कारण पंचनमस्कार भी कहा जाता है, समस्त अभीष्ट कार्योंकी सिद्धि के लिए कल्पद्रुमसे भी अधिक शक्तिशाली है। लौकिक और पार• लौकिक सभी कार्यों में इसकी आगधनासे सफलता मिलती है । अत अपनी आम्नायके अनुसार इसका ध्यान करना चाहिए। निष्कर्ष यह है कि णमोकार महामन्त्रकी वीज ध्वनियां ही समस्त मन्त्रशास्त्रको आधारशिला है । इसोसे यह शास्त्र उत्पन्न हुआ है। मनुष्य अहर्निश सुख प्राप्त करनेकी चेष्टा करता है, किन्तु विश्वके अशान्त वातावरणके कारण उसे एक क्षणको भी शान्ति नहीं मिलती है । ग त मनीषियोका कथन है कि चित्तवृत्तियोका निरोध कर लेने पर व्यक्तिको शान्ति प्राप्त हो सकती है । णमोकार महामन्त्र नाराम चित्तवत्तिका निरोध करने के लिए यागका वर्णन किया गया है । आत्माका उत्कर्ष साधन एव विकास योग - उत्कृष्ट ध्यानके सामर्थ्य पर अवम्बित है। योगव लसे केवलज्ञानको प्राप्ति होती है तथा पूर्ण अहिमा शक्ति या शोलको प्राप्ति-द्वारा सचित कर्ममल दूर कर निर्वाण प्राप्त किया जाता है । साधारण ऋद्धि-सिद्धियां तो उत्कृष्ट ध्यान करनेवालोके चरणोम लोटती है। योगसाधना करनेवाले को शरीरमनपर अधिकार प्राप्त हो जाता है । ___ मनुष्यको वित्तकी चचलताके कारण ही अशान्तिका अनुमव करना पड़ता है, क्योंकि अनावश्यक सकल्प-विकल्प हो दु खोके कारण है। मोह
SR No.010421
Book TitleMangal Mantra Namokar Ek Anuchintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1967
Total Pages251
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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