SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 73
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मंगलमन्त्र णमोकार · एक अनुचिन्तन प्रभावमस्य निशेषं योगिनामप्यगोचरम् । अनभिज्ञो जनो ते य स मन्येऽनिलार्दितः ॥ अनेनैव विशुद्ध्यन्ति जन्तव: पापपक्किताः । अनेनैव विमुच्यन्ते भवक्लेशान्मनीषिणः ॥ अर्थात् - इस लोक मे जितने भी योगियोने आत्यन्तिकी लक्ष्मी -- मोक्षलक्ष्मीको प्राप्त किया है, उन सवोने श्रुनज्ञानभूत इस महामन्त्रकी आराघना करके ही । समस्त जिनवाणीरूप इस महामन्त्र की महिमा एव इसका तत्काल होनेवाला अमिट प्रभाव योगी मुनीश्वरोके भी अगोचर हैं । वे इसके वास्तविक प्रभावका निरूपण करनेमें असमर्थ हैं। जो साधारण व्यक्ति इस श्रुतज्ञानरूप मन्त्रका प्रभाव कहना चाहता है, वह वायुवश प्रलाप करनेवाला ही माना जायेगा । इस णमोकार मन्त्रका प्रभाव केवली ही जाननेमे समर्थ है। जो प्राणी पापसे मलिन हैं, वे इमी मन्त्र से विशुद्ध होते हैं और इसी मन्यके प्रभावसे मनीषोगण संसार के क्लेशोंसे छूटते हैं । स्वाध्याय और ध्यानका जितना सम्वन्ध आत्मशोधनके साथ है, उतना ही इस मन्त्रका भी सम्बन्ध आत्मकल्याणके साथ है । इस मन्त्रका १०८ वार जाप करनेसे द्वादशाग जिनवाणीके स्वाध्यायका पुण्य होता है तथा मन एकाग्र होता है । इस मन्त्र के प्रति अटूट श्रद्धा या विश्वास होनेसे ही यह मन्त्र कार्यकारी होता है। द्वादशाग जिनवाणीका इतना सरल, सुसंस्कृत एव सच्चा रूप कही नही मिल सकता है। ज्ञानरूप आत्माको इमका अनुभव होते ही श्रुतज्ञान की प्राप्ति होती है। ज्ञानावरणीय कर्मकी निर्जरा या क्षयोपशम रूप शक्ति इस मन्त्रके उच्चारणसे मानी है तथा आत्मासे महान् प्रकाश उत्पन्न हो जाता है। अतएव यह महामन्त्र समस्त श्रुतज्ञान रूप है, इसमें जिनवाणीका समस्त रूप निहित है । मनोज्ञानिक दृष्टि से यह विचारणीय प्रश्न है कि णमोकार मन्यका मनपर क्या प्रभाव पड़ता है ? मात्मिक शक्तिका विकास किस प्रकार होता है, जिससे इस मन्त्रको समस्त कार्योंमें सिद्धि देनेवाला कहा गया ७७
SR No.010421
Book TitleMangal Mantra Namokar Ek Anuchintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1967
Total Pages251
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy