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________________ मगलमन्त्र णमोकार - एक अनुचिन्तन ७५ इस मन्त्रमे ३५ अक्षर है । ५ पद हैं । णमो अरिहंताण =७ अक्षर, णमो सिद्धाण - ५, णमो आइरियाण-७, णमो उवज्झायाण =७, णमो लोए सन्वसाहूण = ९ अक्षर, इस प्रकार इस मन्त्रमे कुल ३५ अक्षर हैं। स्वर और व्यजनोका विश्लेषण करनेपर प्रतीत होता है कि 'रणमो अरिहतारण % ६ व्यजन, णमो सिद्धारणं ५ व्यजन, गमो माइरियाण = ५ व्यजन, णमो उवज्झायाण = ६ व्यजन, णमो लोए सव्वसाहूणं-८, इस प्रकार इस मन्यमें कुल ६+५+५+६+८%3D३० व्यजन हैं। स्वर निम्न प्रकार हैं___ इस मन्त्रमे सभी वर्ण मजन्त हैं, यहां हलन्त एक भी वर्ण नहीं है। अतः ३५ अक्षरोमे ३५ स्वर मानने चाहिए। पर वास्तविकता यह है कि ३५ अक्षरोके होनेपर भी वहाँ स्वर ३४ हैं । इसका प्रधान कारण यह है कि णमो अरिहताणं' इस पदमे ६ ही स्वर माने जाते हैं। मन्त्रशास्त्रके व्याकरण के अनुसार 'रणमो मरिहताण' पदके 'म' का लोप हो जाता है। यद्यपि प्राकृतमे ''एटः" - नेत्यनुवर्तते । एडित्येदोती। एदोतोः संस्कृसो सन्धिः प्राकृठे तु न भवति । यथा देवो महिणंदणी, अहो मम्वरिभ, इत्यादि । सूत्रके अनुसार सन्धि न होने के कारण 'अ' का मस्तित्व ज्योका त्यो रहता है, अका लोप या खण्डाकार नही होता है, किन्तु मन्त्रशास्त्रमें 'बहुलम्' सूत्रकी प्रवृत्ति मानकर 'स्वस्योरव्यवधाने प्रकृतिभावो लोपो चकस्य' इस सूत्रके अनुसार अरिहताण' वाले पदके 'ब' का लोप विकल्पसे हो जाता है, अतः इस पदमे छह ही स्वर माने जाते हैं । इस प्रकार कुल मन्त्रमे ३५ अक्षर होनेपर भी ३४ ही स्वर रहते हैं। कुल स्वर और व्यजनोको सल्या ३४+ ३० = ६४ है। मूल वर्गों की संख्या भी ६४ ही है। प्राकृत भापाके नियमानुसारम, इ, उ और ए मूल स्वर तथा जक २. त्रिविक्रमदेवका प्राकृत व्याकरण, पृ० ४, सुनसड्या १ २. जैनसिमान्तकौमुदो, पृ. ४, सूपरल्या रा.
SR No.010421
Book TitleMangal Mantra Namokar Ek Anuchintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1967
Total Pages251
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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