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________________ २४० मंगलमन्त्र णमोकार ' एक अनुचिन्तन विचार ७८ विसंयोजन । १२५ विचार मनकी वह प्रक्रिया है अनन्तानुबन्धी कषायका अन्य जिससे हम पुराने अनुभवको वर्त- कषायरूप परिणमन करना विसंमान समस्याओंके हल करनेमे योजन कहलाता है। लाते हैं। वेदनात्मक विप्लेषणा १०१ प्रत्येक मनोवृत्तिके तीन ऐश्वर्य प्राप्तिकी अकाक्षा पहलू हैं - ज्ञानात्मक, वेदनात्मक वित्तषणा है। और क्रियात्मक । वेदनात्मकका विद्वेषण ८८ तात्पर्य है कि किसी प्रकारकी जो मन्त्र द्वेष भावको उत्पन्न अनुभूतिका होना। करनेमे सहायक हो, वे विद्वेषण वेदनीय कहलाते हैं। वेदनीय वह कम है जिसके विधान १२४ उदयसे प्राणीको सुख और दुखकी ____ अनुष्टान-विशेपको विधान प्राप्ति हो। कहा जाता है। व्यंजन पर्याय विनय-शुद्धि प्रदेशवत्त्व गुणके विकारको जाप करते समय आस्तिक्य व्यजन पर्याय कहते हैं। भावपूर्वक हृदयमे नम्रता धारण व्यवहार १२० करना विनय-शुद्धि है। सग्रह नयसे ग्रहण किये गये विपाविचय पदार्थोंका विधिपूर्वक भेद करना ___ कर्मके फलका विचार करना व्यवहार नय है। विपाकविचय धर्म ध्यान है। शवपीठ विलयन निम्नकोटिके मन्त्रोकी सिद्धिके मनको किसी विशेष प्रवृत्तिको लिए मृतक कलेवपर आसन विलीन कर देना विलयन है। लगाना शवपीठ है । १३०
SR No.010421
Book TitleMangal Mantra Namokar Ek Anuchintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1967
Total Pages251
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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