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________________ मगलमन्त्र णमोकार • एक अनुचिन्तन २३७ पुत्रैषणा १७१ प्रत्याहार १०२ पुत्र प्राप्तिकी कामना या इन्द्रिय और मनको अपनेसासारिक विषयोकी प्राप्तिकी अपने विपयोसे खीचकर अपनी कामना पुत्रपणा है। इच्छानुसार किसी कल्याणकारी पुण्यास्रव ६९ ध्येयमे लगानेको प्रत्याहार कहते पुण्य प्रकृतियोका आना पुण्या- हैं। स्रव है। प्रथमोपशमसम्यक्त्व १४० पूजा मोहनीयकी सात प्रकृतियोके किसीके प्रति अपने हृदयकी उपशमसे होनेवाला सम्यक्त्व । श्रद्धा और आदरभावनाको प्रकट प्रमाद १०४ करना पूजा है। कपाय या इन्द्रियासक्ति रूप पूर्वानुपूर्वी १२९ आचरण प्रमाद है। पूर्व-पूर्वकी योग्यतानुसार प्ररूपणा द्वार वस्तुओं या पदोको क्रम नियोजन । . ११९ पौष्टिक ८८ वाच्य-वाचक, प्रतिपाद्यजिन मन्त्रोंकी साधनासे अभीष्ट प्रतिपादक, विषय-विषयी भावकी कार्यों की सिद्धि एव ससारके ऐश्वर्य- दृष्टिसे णमोकार मन्त्रके पदोका की प्राप्ति हो; वे मन्त्र पौष्टिक व्याख्यान करना प्ररूपणा द्वार है। कहलाते हैं। प्रस्तार १४९ प्रत्यक्षीकरण आनुपूर्वी और अनानुपूर्वीके प्रत्यक्षीकरण एक ऐसी मान- अगोका विस्तार करना प्रस्तार है। सिक क्रिया है जिसके द्वारा वाता- प्राणायाम १०२ वरणमें उपस्थित वस्तु तथा ज्ञान श्वास आर उच्छ्वासक माधनइन्द्रियोको उत्तेजित करनेवली परि- को प्राणायाम कहते हैं। इसके स्थितियोका तात्कालिक ज्ञान प्राप्त तीन भेद हैं - पूरक, कुम्भक ओर होता है। रेचक ।
SR No.010421
Book TitleMangal Mantra Namokar Ek Anuchintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1967
Total Pages251
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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