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________________ मंगलमन्त्र णमोकार . एक अनुचिन्तन मान थे वे पूर्व ग्रन्थ कहलाये | इनकी सख्या चौदह होने से ये चौदह पूर्व कहे जाते हैं । ८८ जृम्भण भूत, जिन मन्त्रो की शक्तियो से शत्रु प्रेत, व्यन्तर आदि भय त्रस्त हो जायें, काँपने लगें, उन मन्त्रोको जृम्भण कहते हैं । जिनकल्पि ४९ जिनकल्पिका अर्थ है समस्त परिग्रहके त्यागी दिगम्बर उत्तम घारी साघु 1 ये एकादशाग सहनन सूत्रोंके धारक गुहावासी होते हैं । जिज्ञासा ११९ किसी वस्तु या विचारको जाननेरूप जो प्रवृत्ति होती है उसे जिज्ञासा कहते हैं । तत्परता नियम तप तप है | त्याग ४५ इच्छाभोका निरोध करना २३३ २७ किसी वस्तुसे ममता या मोहको छोडना त्याग कहलाता है । त्यागका तात्पर्यं दानसे है । दमन ८० इस नियम के अनुसार प्राणीको ऐसे काम करनेमे आनन्द मिलता है जिसके करनेकी तैयारी उसमे होती है और ऐसे काम करनेसे उसे असन्तोष प्राप्त होता है जिसके करनेकी तैयारी उसमें नही होती । ८१ मूल प्रवृत्तिके प्रकाशनपर नियन्त्रण करना दमन कहलाता है । दर्शनावरण ४० जो कर्म आत्मा के दर्शन गुणका आच्छादन करता है वह दर्शनावरणीय कर्म कहलाता है । दर्शनोपयोग २६ पदार्थके सामान्य रूपको ग्रहण चैतन्यरूप प्रवृत्ति करनेवाली दर्शनोपयोग है । देशवती ३२ जो श्रावक व्रतोके धारण करनेवाले गृहस्थ हैं वे देशव्रती हैं। दैवसिक १७५ दिनोकी अवधिसे किये जानेवाले व्रतोको दैवसिक व्रत कहते हैं । दैवसिक व्रतोमे दश लक्षण, पुष्पाजलि और रत्नत्रय आदि है ।
SR No.010421
Book TitleMangal Mantra Namokar Ek Anuchintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1967
Total Pages251
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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