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________________ कमलासन मंगलमन्त्र णमोकार एक अनुचिन्तन २३१ देने लगना उदीरणा है। शरीरको औदारिक शरीर कहते है। उपयोग १३० औपसर्गिक १२२ जानने-देखने रूप चेतनाकी उपसर्गवाचक प्रत्ययोको शब्दोविशेष परिणतिका नाम उपयोग है। के पहले जोड देनेसे जो नवीन शब्द उपांशु ११३ बनते हैं वे औपसर्गिक कहे जाते हैं। अन्तर्जल्परूप किसी मन्त्रका १०५ जाप करना - मन्त्रके शब्दोको कमलासन पद्मासनका ही मूखमे बाहर न निकालकर कण्ठ- दूसरा नाम है। इसमे दाहिना या स्थानमे शब्दोका गुजन करते रहना बायां पैर घुटनेसे मोडकर दूसरे हो उपाशु विधि है। पेरके जघामूलपर जमा दीजिए और उमंग ___७८ दूसरे पैरको भी मोड़कर उसी किसी भी कार्यके प्रति उत्साह प्रकार दूसरे जघामूलपर रखिए। ग्रहण करनेकी क्रिया उमग कह. कल्पना ८७ लाती है। पूर्व अनुभूतियो तथा उनसे ऋजुसूत्र १२१ सम्बद्ध घटनाओको विम्बी (Imaभूत और भावी पर्यायोको ges) के रूपमे संजोनेकी मानसिक छोडकर जो वर्तमानको ही ग्रहण क्रियाको कल्पना कहते हैं । करता है उस ज्ञान और वचनको कषाय ऋजुसूत्र नय कहते हैं। जो आत्माको कसे अर्थात् दुःख एवंभूत १२० दे अथवा आत्माकी क्रोधादि रूप जिस शब्दका जिस क्रिया रूप विकारमय परिणतिको कषाय अर्थ हो उस क्रिया रूप परिणत करते है। पदार्थको ही ग्रहण करनेवाला वचन कायशुद्धि ७२ और ज्ञान एवभूत नय है। यत्नाचारपूर्वक शरीर शुद्ध औदारिक शरीर ४२ करनेकी क्रियाको कायशुद्धि मनुष्य और तियंचोके स्थूल कहते हैं ।
SR No.010421
Book TitleMangal Mantra Namokar Ek Anuchintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1967
Total Pages251
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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