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________________ मंगलमन्त्र णमोकार - एक अनुचिन्तन २१३ कल्याण कर सकते है । जिन परवस्तुओको भ्रमवश अपना समझने के कारण अशान्तिका अनुभव करना पड रहा है, उन सभी वस्तुओसे मोहबुद्धि दूर हो सकती है । अनात्मिक भावनाएँ निकल जाती हैं और आत्मिक प्रवृत्ति होने लगती है । जबतक व्यक्ति भौतिकवादकी ओर झुका रहता है, असत्यको सत्य समझता है, तबतक वह ससार परिभ्रमणको दूर नही कर सकता । णमोकार मन्त्र की भावना व्यक्तिमे समृद्धि जागृत करती है, उसमें आत्माके प्रति अटूट आस्था उत्पन्न करती है, तत्त्वज्ञानको उत्पन्न कर मात्मिक विकासके लिए प्रेरित करती है और बनाती है व्यक्तिको आत्मवादी | यह मानी हुई बात है कि विश्वकल्याण उसी व्यक्तिसे हो सकता है, जो पहले अपनी भलाई कर चुका हो । जिसमे स्वय दोष, गलती, बुराई एवं दुर्गुण होगे, वह अन्यके दोषों का परिमार्जन कभी नही कर सकता है और न उनका आदर्श समाज के लिए कल्याणप्रद हो सकता है । कल्याणमयी प्रवृत्तियाँ तभी सम्भव हैं, जब आत्मा स्वच्छ और निर्मल हो जाये । अशुद्ध प्रवृत्तियोके रहने पर कल्याणमयी प्रवृत्ति नही हो सकती ओरन व्यक्ति त्यागमय जीवनको अपना सकता है। व्यक्ति, राष्ट्र, देश, समाज, परिवार और स्वय अपनी उन्नति स्वार्थ, मोह और महकारके रहते हुए कभी नहीं हो सकती है । अतएव णमोकार मन्त्रका आदर्श विश्वके समस्त प्राणियोके लिए उपादेय है। इस आदर्श के अपनानेसे सभी अपना हितसाधन कर सकते हैं । इस महामन्त्रमें किसी दैवी शक्तिको नमस्कार नही किया गया है, किन्तु उन शुद्ध प्रवृत्तिवाले मानवोको नमस्कार किया है, जिनके समस्त क्रिया - व्यापार मानव समाजके लिए किसी भी प्रकार पीडादायक नही होते हैं । दूसरे शब्दोमे यो कहना चाहिए कि इस मन्त्रमे विकाररहित सासारिक प्रपचसे दूर रहनेवाले मानवोको नमस्कार किया गया है। इन विशुद्ध मानवोने अपने पुरुषार्थं द्वारा काम, क्रोध, लोभ, मोहादि विकारोको जीत लिया है, जिससे इनमे स्वाभाविक गुण प्रकट हो गये हैं । प्रायः देखा जाता है कि साधारण मनुष्य अज्ञान और राग-द्वेषके कारण स्वय - -
SR No.010421
Book TitleMangal Mantra Namokar Ek Anuchintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1967
Total Pages251
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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