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________________ मगलमन्त्र णमोकार एक अनुचिन्तन जखौरा ( झांसी) निवासी अब्दुल रज्जाक नामक मुसलमानकी सारी विपत्तियां दूर हो गयी थी। उसने अपना एक पत्र जैनदर्शन वर्ष ३ अक ५-६ पृ० ३१ मे प्रकाशित कराया है। वहाँसे इस पत्रको ज्योका त्यो उद्धृत किया जाता है। पत्र इस प्रकार है - "मैं ज्यादातर देखता या सुनता हूं कि हमारे जैन भाई धर्मकी ओर ध्यान नहीं देते । और जो थोडाबहुत कहने-सुननेको देते भी हैं तो सामायिक और णमोकार मन्त्रके प्रकाशसे अनभिज्ञ हैं । यानी अभीतक वे इसके महत्त्वको नहीं समझते हैं। रातदिन शास्त्रोका स्वाध्याय करते हुए भी अन्धकारकी ओर बढ़ते जा रहे हैं। अगर उनसे कहा जाये कि भाई, सामायिक और णमोकार मन्त्र आत्माको शान्ति पैदा करनेवाला और आये हुए दु खोको टालनेवाला है, तो वे इस तरहसे जवाब देते हैं कि यह णमोकार मन्त्र तो हमारे यहाँके छोटे-छोटे बच्चे जानते हैं । इसको माप क्या बताते हैं, लेकिन मुझे अफसोसके साय लिखना पडता है, कि उन्होने सिर्फ दिखानेकी गरजसे मन्त्रको रट लिया है। उसपर उनका दृढ विश्वास न हुआ और न वे उसके महत्त्वको ही समझे । मैं दावेके साथ कहता हूँ कि इस मन्त्रपर श्रद्धा रखनेवाला हर मुसीबतसे बच सकता है। क्योकि मेरे ऊपर ये बातें बीत चुकी हैं। मेरा नियम है कि जब मैं रातको सोता हूँ तो णमोकार मन्त्रको पढता हुआ सो जाता है। एक मरतवे जाड़ेकी रातका जिक्र है कि मेरे साथ चारपाईपर एक बडा सांप लेटा रहा, पर मुझे उसकी खबर नहीं। स्वप्नमे जरूर ऐसा मालूम हुआ जैसे कोई कह रहा हो कि उठ सांप है। मैं दो-चार मरतवे उठा भी और उठकर लालटेन जलाकर नीचे-ऊपर देखकर फिर लेट गया लेकिन मन्त्रके प्रभावसे जिस ओर सांप लेटा था, उधरसे एक मरतबा भी नहीं उठा । जब सुबह हुमा, मैं उठा और चाहा कि विस्तर लपेट लं, तो क्या देखता हूँ कि बडा मोटा सांप लेटा हुआ है। मैंने जो पल्ली खीची तो वह झट उठ बैठा और पल्लीके सहारे नीचे उतरकर अपने रास्ते चला गया। .
SR No.010421
Book TitleMangal Mantra Namokar Ek Anuchintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1967
Total Pages251
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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