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________________ २०० मंगलमन्त्र णमोकार - एक अनुचिन्तन नामको अनुपम सुन्दर पुत्री है। जब इसका विवाह सम्बन्ध ठीक हो रहा था, तब एक नटके नृत्यको देखकर उसे जाति-स्मरण हो गया, अत. उसने निश्चय किया कि जो मेरे पूर्वभवके वृत्तान्तको वतलायेगा, उसीके साप में विवाह करूंगी। अनेक देशोके राजपुत्र आये, पर सभी निराश होकर लौट गये। राजकुमारीके पूर्वभवके वृत्तान्तको कोई नही वतला सका। अब उस राजकुमारीने पुरुषका मुंह देखना ही बन्द कर दिया है और वह एकान्त स्थानमे रहकर समय व्यतीत करती है । __ पथिककी उपर्युक्त वातोको सुनकर राजकुमारका आकर्षण राजकुमारी के प्रति हुआ और उसने मन-ही-मन उसके साथ विवाह करने की प्रतिज्ञा की । वहाँसे चलकर मार्गमे मन्त्री-पुत्र और राजकुमारने णमोकार मन्त्रके प्रभावकी कथाओका अध्ययन, मनन और चिन्तन किया, जिससे राजकुमारने अपने पूर्वभवके वृत्तान्तको अवगत कर लिया।पासमे रहनेवाली मणिके प्रभाव. से दोनो कुमारोंने स्त्रीवेष बनाया और राजकुमारीके पास पहुंचे। राजसिंहने राजकुमारीके पूर्वभवका समस्त वृत्तान्त बतला दिया। तथा अपना वेष बदलकर वहांतक आनेकी बात भी कह दी। राजकुमारी अपने पूर्वभवके पतिको पाकर बहुत प्रसन्न हुई । उसे मालूम हो गया कि णमोकार मन्त्रके माहात्म्यसे मैं भीलनीसे राजकुमारी हुई हूँ और यह भीलसे राजपुत्र । अतः हम दोनो पूर्वभवके पति-पत्नी हैं। उसने अपने पितासे भी यह सब वृत्तान्त कह दिया। राजाने रत्नावती और राजसिंहका विवाह कर दिया। कुछ दिनो तक सासारिक भोग भोगनेके उपरान्त राजसिंह अपने पुत्र प्रतापसिंहको राजगद्दी देकर धर्मसाधनके लिए रानीके साथ वनमे चला गया। राजसिंह जब वीमार होकर मृत्यु-शय्यापर पड़ा जीवनकी अन्तिम घडियां गिन रहा था, उसी समय उसने जाते हुए एक मुनिको देखा और अपनी स्त्रीसे कहा कि आप उस साधुको बुला लाइए । जव मुनिराज उसके पास आये तो राजसिंहने धर्मोपदेश सुननेकी इच्छा प्रकट की। मुनिराजने णमोकार मन्त्रका व्याख्यान किया और इसी महामन्त्र का
SR No.010421
Book TitleMangal Mantra Namokar Ek Anuchintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1967
Total Pages251
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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