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________________ मंगलमन्त्र णमोकार एक अनुचिन्तन १७९ द और आराधना कया-कोषके अतिरिक्त अन्य पुराणोमें भी इस महामन्त्रके महत्त्वको प्रकट करनेवाली कथाएं हैं। एक बार जिसने भी भक्तिभावपूर्वक कयामत इस महामन्त्र का उच्चारण किया वही उन्नत हो - गया। नीचसे नीच प्राणी भी इस महामन्त्रके णमोकार मन्त्र प्रभावसे स्वर्ग और अपवर्गके सुख प्राप्त करता है । धर्मामृत की पहली कथामे आया है कि वसुभूति ब्राह्मणने लोभसे आकृष्ट होकर दिगम्बरमुनिव्रत धारण किये थे तथा दयामित्रके अष्टाह्निक पर्वको सम्पन्न करानेके लिए दक्षिणा प्राप्तिके लोभसे उसने केशलुच एवं द्रव्यलिंगी साधुके अन्य व्रत धारण किये थे । दयामित्र जव जगलमे जा रहा था तो एक दिन रातको जगली लुटेरोने दयामित्र सेठके साथवाले व्यापारियोपर आक्रमण किया। दयामित्र वीरतापूर्वक लुटेरोके साथ युद्ध करने लगा । उसने अपार वाण वर्षा की, जिससे लुटेरोके पैर उखड गये और वे भागनेपर उतारू हो गये। युद्ध-समय वसुभूति दयामियके तम्बूमे सो रहा था। लुटेरोका एक बाण माकर वसुभूतिको लगा और वह घायल होकर पीडासे तडफडाने लगा । यद्यपि दयामित्रके उपदेशसे उसे सम्यक्त्वकी प्राप्ति हो चुकी थी, तो भी साधारण-सा कष्ट उसे था। दयामित्रने उसे समझाया कि आत्माका कल्याण समाधिमरणके द्वारा ही सम्भव है, अत उसे समाविमरण धारण कर लेना चाहिए। सल्लेखनासे आत्मामे अहिंसाकी शक्ति उत्पन्न होती है, अहिंसक ही सच्चा वीर होता है । अत मृत्युका भय त्यागकर णमोकार मन्यका चिन्तन करें। इस मन्त्रको महिमा अद्भुत है । भक्तिभावपूर्वक इस मन्त्रका ध्यान करनेसे परिणाम स्थिर होते हैं तथा सभी प्रकारकी विघ्न-बाधाएँ टल जाती हैं । मनुप्यकी तो बात ही क्या, तियंच भी इस महामन्त्रके प्रभावसे स्वर्गादि सुखोको प्राप्त हुए हैं । हो, इस मन्यके प्रति अटूट श्रद्धा होनी चाहिए । श्रद्धाके द्वारा ही इसका वास्तविक फल प्राप्त होगा । योतो इस मन्यके उच्चारण मापसे यात्मामे असंख्यातगुणी विशुद्धि उत्पन्न होती है।
SR No.010421
Book TitleMangal Mantra Namokar Ek Anuchintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1967
Total Pages251
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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