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________________ १६४ मंगलमन्त्र णमोकार : एक अनुचिन्तन अपने-आप झुक जाता है। विषय कषायोसे इसे अरुचि हो जाती है । इस महामन्त्रके जप और मननमे ऐसी शक्ति है कि व्यक्ति जिन बाह्य पदार्थोमे सुख समझता था, जिनके प्राप्त होनेसे प्रसन्न होता था, जिनके पृथक् होनेसे इसे दुःखका अनुभव होता था, उन सबको क्षण भरमे छोह देता है । आत्माके अहितकारक विषय और कषायोसे भी इसकी प्रवृत्ति हट जाती है। इन्द्रियोकी पराधीनता, जो कि कुगतिकी और जीवको ले जानेवाली है, समाप्त हो जाती है । मंगल वाक्यका चिन्तन समस्त पापको गलाने - नष्ट करनेवाला होता है और अनेक प्रकारके सुखोको उत्पन्न करनेवाला है। अतः सुखाकाक्षीको णमोकार मन्त्र-जैसे महा पावन मंगल वाक्योका चिन्तन, मनन और स्मरण करना आवश्यक है; जिससे उसकी राग-द्वेष निवृत्ति हो जाती है। करणलब्धिकी प्राप्तिमे सहायक णमोकार मन्त्र है, इससे अनन्तानुबन्धी और मिथ्यात्वका अभाव होते ही आत्मामे पुण्यास्रव होनेसे बद्ध कर्मजाल विशृखलित होने लगता है । ___णमोकार मन्त्रमें पचपरमेष्ठीका ही स्मरण किया गया है। पचपरमेष्ठीकी शरण जाने, उनकी स्मृति और चिन्तनसे राग-द्वेष रूप प्रवृत्ति रुक जाती है, पुरुषार्थकी वृद्धि होने लगती है तथा रत्नत्रय गुण आत्मामें आविर्भूत होने लगता है । आत्माके गुणोको आच्छादित करनेवाला मोह ही सबसे प्रधान है, इसको दूर करनेके लिए एकमात्र रामवाण पंचपरमेष्ठीके स्वरूपका मनन, चिन्तन और स्मरण ही है । णमोकार मन्त्र के उच्चारण मात्रसे आत्मामे एक प्रकारकी विद्युत् उत्पन्न हो जाती है, जिससे सम्यक्त्वकी निर्मलताके साथ सम्यग्ज्ञान और सम्यक चारित्रकी भी वृद्धि होती है। क्योकि इस महामन्त्रकी आराधना किसी अन्य परमात्मा या शक्तिविशेषकी आराधना नहीं है, प्रत्युत अपनी आत्माकी ही उपासना है। ज्ञान, दर्शन मय अखण्ड चैतन्य आत्माके स्वरूपका अनुभव कर अपने अखण्ड साधक स्वभावकी उपलब्धिके लिए इस महामन्त्र-द्वारा ही प्रयत्न क्यिा जाता है। णमोकार मन्त्र या इस मन्त्र के अगभूत प्रभाव आदि वीजमन्त्रोके
SR No.010421
Book TitleMangal Mantra Namokar Ek Anuchintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1967
Total Pages251
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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