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________________ १६० मंगलमन्त्र णमोकार · एक अनुचिन्तन करनेपर सिद्ध होती हैं। दिगम्बर मुनि कर्मक्षय करनेके लिए उक्त प्रकारका जाप करते हैं। जबतक रूपातीत ध्यानकी प्राप्ति नहीं होती, तबतक इस मन्त्र-द्वारा क्रिया पदस्थ ध्यान असख्यातगुणी निर्जराका कारण है। परिवर्तन - भंग सख्यामे अन्त्य गच्छका भाग देनेसे जो लब्ध, आवे, वह उस अन्त्य गच्छका परिवर्तनाक होता है, इसी प्रकार उत्तरोत्तर गच्छोका भाग देनेपर जो लव्ध आवे वह उत्तरोत्तर गच्छसम्बन्धी परिवर्तनाक सख्या होती है । उदाहरणार्थ- पूर्वोक्त भंगसख्या ३९९१६८०० मे अन्त्यगच्छ ११ का भाग दिया तो ३९९१६८००-११ = ३६२८८०० परिवर्तनाक अन्त्यगच्छका हुआ । इसी तरह ३६२८८००-१० = ३६२८८० यह परिवर्तनाक दस गच्छका आया । ३६२८८०-९% ४०३२० यह परिवर्तनाक नो गच्छका आया । ४०३२०-८ =५०४० यह परिवर्तनाक आठ गच्छका हुआ। ५०४० ७ = ७२० परिवर्तनाक सात गच्छका आया । ७२०-६ - १२० यह परिवर्तनाक छह गच्छका, १२०-५= २४ परिवर्तनाक पांच गच्छका, २४-४ = ६ परिवर्तनाक चार गच्छका, ६-३ = २ परिवर्तनाक तीन गच्छका, २-२-१ परिवर्तनाक दो गच्छका एव १-१ = १ परिवर्तनाक एक गच्छका हुआ। परिवर्तनाक चक्र निम्न प्रकार बनाया जायेगा। परिवर्तन चक्र १ १ २ ६ २४|१२० ७२० ५०४०९४०३२०३६२८८० ३६२८८०० नष्ट और उहिष्ट - "रूपं स्वा पदानयन नष्ट" - सख्याको रखकर पदका प्रमाण निकालना नष्ट है। इसकी विधि है कि भगसख्याका भाग देनेपर जो शेष रहे, उस शेष सख्यावाला भग ही पदका मान होगा । पूर्वमे २४.२४ भगोके कोठे बनाये गये हैं। अतः शेष तुल्य पद समझ लेना
SR No.010421
Book TitleMangal Mantra Namokar Ek Anuchintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1967
Total Pages251
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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